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________________ योगिराज श्रीमद् प्रानन्दघनजी एव उनका काव्य-३६२ अनि अनुभव प्रीतम बिना, काहु की हठ के नइ कतिल कोर । हाथी पाप मते अरे, पावे न महावत जोर ॥ ३ ॥ सुनि अनुभव प्रीतम बिना, प्रान जात इन ठाविहि ।। हे जिन आतुर चातुरी, दूरि 'प्रानन्दघन' नाहि ॥ ४ ॥ नोट:-पद २, तथा १० श्रीमद् आनन्दघनजी के ही हैं। पद सं. ६ 'सुखानन्द' कवि रचित है। पद की अन्तिम पंक्ति में 'सुखानन्द' की छाप है। पद सं. ११ भी श्रीमद् आनन्दघनजी का ही होना चाहिए। अभी निर्णय नहीं किया जा सकता। प्रखंड स्वरूप ज्ञान ( राग-तोड़ी ) साखी-पातम अनुभौ रस कथा, प्याला अजब विचार। । अमली चाखत ही मरे, घूमे सब संसार ॥ प्रातम अनुभौ रीति वरी री। ' मोर बनाइ निज रूप अनुपम, तीछन रुचि कर तेग करी री॥ . टोप सनाह सूर को बानो, , इकतारी चोरी पहरी री । प्रातम० ॥ १ ॥ सत्ता थल में मोह विडारत, ए ए सुरजन मुह निसरी री । प्रातम० ।। २ ॥ केवल कमला प्रपछर सुन्दर, गान करे रस रंग भरी री। जीति निसाण बजाइ बिराजे, 'प्रानन्दघन' सरवंग धरी री । प्रातम० ॥ ३ ॥ साखी का अर्थः-प्रात्म-अनुभव-रस-कथा का विचार अद्भुत है। रस का प्याला चखते ही नशेबाज मर-मिट जाता है अर्थात् जो उस पर
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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