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________________ . . श्री मानन्दघन पदावली-३८१ को पर परणंति कहे सुण साहेबा रे, - :: तमे मुझने मूकी केम रे, सुधा० । । कहो मुनि कवण अपराध थी रे, ... ::: तमे मुझने छोडो एम रे, सुधा० ।। ८ ।। में म्हारो स्वभाव नहीं छोडियो रे, ! नथी म्हारो कोई विभाव रे, सुधा० । पंचरंगी माहरू स्वभाव छ रे,. ": 1: तेने पादरू छु सदा काल रे, सुधा० ।। ६ ।। वर्ण गंध रसादि छोडू नहीं रे, । तो श्यो अवगुण कहेवाय रे, सुधा० । कदी प्रवर स्वभाव न पादरू रे, .... ! सडन पड़न विध्वंसन न छंडाय रे, सुधा० ।। १० ॥ सिद्ध जीव थी अनंत गुणा कह्या रे, .:: म्हारा घरमां जे चेतन राय रे, सुधा० । ते सघला म्हारे वस थई रह्या रे, तमथी छोडी ने केम जवाय रे, सुधा० ।। ११ ।। • ' तब मुनिवर कहे कुमति सुणो रे, थारू स्वरूप जाण्युप्राज रे । थारा स्वरूपमां जिम तू मगन छे रे, . ... म्हारा स्वरूप मां थयो हूँ आज रे ।। १२ ॥ म्हारू स्वरूप अनन्त में जाणियुरे, ते तो अचल अलख कहेवाय रे । सुमतिथी स्वभाव मारगे रमू रे, ॥ ... थारा सामू जोयुकेम जाय रे ।। १३ ।।
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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