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________________ श्री आनन्दघन पदावली-३७७ निज स्वरूप रमणे रह्या जयवंताजी, .. नवी परनो परचार रे गुणवंताजी ।। २ ॥ भाषा समिति थी सुख थयो रे जयवंताजी, ते जाने मुनिराय रे गुणवंताजी ।। ३ ।। ज्ञानवंत निज ज्ञान थी जयवंताजी, अनुभव भाषक थाय रे गुणवंताजी ॥ ४ ॥ भाषा समिति स्वभाव थी जयवंताजी, __ स्व पर विवेचन थाय रे गुणवंताजी ।। ५ ॥ हवे द्रव्य थी पण महामुनि जयवंताजी, ___सावद्य वचन नो त्याग रे गुणवंताजी ॥ ६ ॥ सावखे विरम्या जे मुनि जयवंताजी, ते कहिये महाभाग रे गुणवंताजी ।। ७ ।। पर-भाषण दूरे करी जयवंताजी, ... निज स्वरूप ने भास रे गुणवंताजी ॥ ८ ॥ 'प्रानन्दघन' पद ते लहे जयवंताजी, प्रातम ऋद्धि उल्लास रे गुणवंताजी ।। ६ ।। * ढाल ३१ (राग बंगालो - राजा नहीं) ३. एषणा समिति त्रीजु समिति एषणा नाम, तेणे दीठो आनंदघन स्वाम, चेतन सांभलो। बब दीठो प्रानंदघन वीर, सहज स्वभावे थयो छे वीर, चेतन सांभलो ॥ १ ॥
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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