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________________ श्री आनन्दघन पदावली-३५३ ( २२ ) श्री नेमि जिन स्तवन (राग--मारू-धरणरा ढोला-ए देशी) अष्ट भवान्तर बाल्ही रे वाल्हा, तू मुझ आतमराम । मन रा वाल्हा० मुगति नारी पापणे रे वाल्हा, सगपण कोई न काम । मन रा वाल्हा० ।। १ ।। घर प्रावो हो बालम घर आवों, म्हारी आसा रा विसराम । मनरा० । रथ फेरो हो साजन रथ फेरो, म्हारा मनना मनोरथ साथ । मनरा० ।। २ । नारी पखे स्यों नेहलो रे वाल्हा, साँच कहे जगन्नाथ । मनरा० । ईसर अरधंगे धरी रे वाल्हा, तू मुझ झाले न हाथ । मनरा ।। ३ ।। पशु जन नी करुणा करी रे वाल्हा, प्राणी हृदय विचार । मनरा० । माणस नी करुणा नहीं रे वाल्हा, ए कुण घर आचार । मनरा० ॥ ४ ॥ प्रेम कल्पतरु छेदियो रे वाल्हा, धरियो जोग धतूर । मनरा० । चतुराई रो कुण कहो रे वाल्हा, गुरु मिल्यो जग सूर । मनरा० ॥ ५॥ म्हारो तो एह मां क्यू नहीं रे वाल्हा, आप विचारो राज । मनरा० । राजसभा मां बेसतां रे वाल्हा, किसड़ी वधसी लाज । मनरा० ॥ ६ ॥
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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