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________________ योगिराज श्रीमद् श्रानन्दघनजी के सम्बन्ध में कुछ ज्ञातव्य कहते हैं कि श्रीमद् श्रानन्दघनजी के स्तवनों का प्राशय जानने के लिए श्री ज्ञानविमल सूरिजी सूरत में सूर्यमण्डन पार्श्वनाथ भगवान के . जिनालय में छह माह तक ध्यानस्थ रहे थे और तत्पश्चात् उन्होंने उन स्तवनों के अर्थ लिखे हैं । श्रीमद् के स्तवनों में भक्ति की पराकाष्ठा भगवान श्री अजितनाथजी, श्री सम्भवनाथजी, श्री पद्मप्रभुजी, श्री विमलनाथजी आदि के स्तवनों को ध्यान से देखा जाये तो श्रीमद् की प्रभु के प्रति कितनी अनन्य भक्ति थी, उसका खयाल आता है । प्रभु के साथ मिलाप का तथा उनके साथ एक होने का भाव श्रीमद् का अपूर्व था । 'उनके हृदय के उद्गारों में उनकी आध्यात्मिक दशा तथा भक्ति की एक श्रेष्ठतम झलक दृष्टिगोचर होती है । तीर्थंकरों की वास्तविक स्तुति : योगिराज श्रीमद् आनन्दघनजी ने 'चौबीसी' नामक कृति में तीर्थंकरों के गुणों की वास्तविक स्तुति की है। चौदहवें तीर्थंकर श्री अनन्तनाथजी के स्तवन में उपदेशयुक्त स्तवना का आभास है । श्री श्रेयांसनाथ प्रभु के स्तवन में अध्यात्म का समावेश किया गया है । भगवान श्री कुन्थुनाथ के स्तवन में मन से सम्बन्धित विचार व्यक्त करके श्री कुन्थुनाथ की स्तवना की गई है। शास्त्रों में उल्लिखित दर्शन-भेद एवं हेतु नयों के द्वारा श्री मुनिसुव्रत स्वामी तथा श्री नमिनाथ भगवान स्तवना की गई है। श्री नेमिनाथ की स्तवना में उन्होंने राजीमती के उपालम्भों से युक्त स्तवना की है । सेवा के वास्तविक उद्गार युक्त विचारों के द्वारा उन्होंने श्री संभवनाथ जिनेश्वर की स्तवना की है । इस
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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