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शासनसम्राट् प.पू. आचार्य श्रीमद विजयनेमि सूरीश्वर जी म.सा. के पट्टप्रभावक साहित्यसम्राट आचार्य श्रीमद् विजय लावण्य सूरीश्वर जी • म.सा. के पट्टालंकार कविदिवाकर जैनाचार्य श्रीमद् विजय दक्ष सूरीश्वर
जी म.सा. के पट्टधर जैनधर्मदिवाकर राजस्थानदीपक आचार्य श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वर जी महाराज ने आशीर्वचन लिखकर इस कृति को शोभनीय बना दिया है। उनके पद-पद्मों में कोटिशः नमन ।
इस ग्रन्थ के प्रकाशन में जैनधर्मदिवाकर, राजस्थानदीपक आचार्यश्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वर जी महाराज के 'शिष्यरत्न' 'पंन्यासप्रवर श्री जिनोत्तम विजय जी गणिवर्य म.सा. की मंगल-प्रेरणा रही है, जो वन्दनीय है।
डॉ. चेतनप्रकाश जी पाटनी, जोधपुर के प्रति ग्रन्थ के प्रफ संशोधन, साज-सज्जा एवं सुनियोजन के लिए आभार ... नयनाभिराम मुद्रण के लिए श्रीमान् अ. जब्बार सा., ताज.प्रिण्टर्स, जोधपुर वालों को हमारा हादिक धन्यवाद। उनके अनुभव, श्रम और कौशल के बिना यह सुरुचिपूर्ण प्रकाशन प्रस्तुत कर पाना हमारे लिए सम्भव न था।
. इस महान् ग्रन्थ के प्रकाशन में मेड़ता सिटी के उन दानी मानी महानुभावों के प्रति भी अपना हार्दिक आभार प्रकट करते हैं, जिन्होंने आर्थिक सहायता के रूप में अपने विज्ञापन ग्रन्थ में प्रकाशनार्थ दिये हैं।
ग्रन्थ-प्रकाशन में अर्थसहयोग हेतु कर्मठ कार्यकर्ता परम गुरुभक्त श्री मांगीलाल जी तातेड़ एवं उनके सुपुत्र श्री गौतमचन्द जी तातेड़ ने अथक प्रयास किया है। उसके लिए उन्हें साधुवाद !
प्रस्तुत प्रकाशन में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से जिन महानुभावों का मार्गदर्शन तथा सहयोग प्राप्त हुआ है। उन सभी के प्रति हम हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं।
आशा है, यह ग्रन्थ सुधी पाठकों, धर्मजिज्ञासुत्रों का मार्ग प्रशस्त करेगा।
ॐ जैनं जयति शासनम् 5