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________________ stede geddede detectadata toodesede de dedesisto detestade de desobedade destes श्यकक्वयक - प्रकाशकीय निवेदन है testostogosestestest ककककककककककककककककककककककककककककर विश्वविभूति १७वीं सदी के महान् आध्यात्मिक योगिराज श्रीमद् प्रानन्दघन जी महाराज के दिव्य जीवन चरित्र एवं उनके द्वारा रचित काव्य रचनाओं पर विशद विवेचन युक्त 'योगिराज श्रीमद् प्रानन्दघन जो एवं उनका काव्य' ग्रन्थ प्रकाशन का सौभाग्य हमें प्राप्त हुआ है। इसे हम श्री सुशील साहित्य-प्रकाशन समिति के लिए बहुत दुर्लभ गौरव समझते हैं। श्री आनन्दघन जी अर्थात् दिव्य-विभूति के दर्शन । श्री प्रानन्दघन जी अर्थात् अध्यात्म-दृष्टि का तेजपुञ्ज । श्री प्रानन्दघन जी अर्थात अध्यात्म-योग की साधना। श्री प्रानन्दघन जी अर्थात् अध्यात्मयोगी का तेजोमय दर्शन। ऐसे महापुरुष ने कहा था 'अवधू क्या मांगू गुन-हीना, में गुणगान न प्रवीणा', उनका निरन्तर रटन था-- हे प्रभु ! मैं तुझसे क्या सहायता मांगू ? मेरे पाँवों में बंधन हैं। सिर पर बोझा है। मैं मार्ग से अनभिज्ञ हूँ, पंथ अत्यन्त कठिन है। मेरे पास कोई साधन नहीं है। प्रभु ! तूं अपनी कृपा की एक बूद मुझ पर भी वृष्टि कर ताकि मेरा आत्मपद तेरे आत्मपद में सम्मिलित होकर आनन्द पद प्राप्त करे। . ऐसे आध्यात्मिक योगी श्री आनन्दघनजी महाराज के जीवनचरित्र एवं उनके काव्यों पर विवेचन लिखने का महान् कार्य गुरुभक्त सुविख्यात साहित्यकार सुशील-सन्देश के मानद सम्पादक श्री ननमल जी विनयचन्द जी सुराणा ने किया है। उनके इस सुकृत के लिए हम उनका हार्दिक आभार मानते हैं ।
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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