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________________ श्री आनन्दघन पदावली-२०१ शुद्ध चेतना पुनः अनुभव को कहती है कि 'मेरे स्वामी मुझसे ऐंठ रख कर, भेद-भाव रखकर विभाव दशा रूप अन्य स्त्री की संगति से भिक्षुक की तरह पुद्गल ऐंठ का प्रास्वादन करने का प्रयत्न करें और मुझसे भिन्नता रखें तो किसको मुह नीचा करना पड़ेगा? हे अनुभव ! आप इसका तनिक विचार करो। यदि वे विभाव-दृष्टि का परित्याग कर दें तो हमारी अद्वैतता हो जाये। अत: हे अनुभव ! आप कृपा करके मेरे चेतन-स्वामी को समझायें। आप मेरी और उनकी अद्वैतता कर दो तो परमात्म-दशा प्रकट हो जायेगी।' - अर्थ शुद्ध चेतना की बात सुनकर अनुभव ने जाकर उसके कन्त चेतन को समझाया। स्वरूपानन्द के धनी चेतन अपने स्वभाव रूपी घर पर आ गये और उनके आगमन से वातावरण ऐसा सुखद हो गया मानों वसन्त का आगमन हो गया हो, आनन्द लहरा उठा हो ॥५।। विवेचन - अनुभव शुद्ध चेतना का निवेदन सुनकर आत्मा के पास गया, उन्हें शुद्ध-चेतना का समस्त कथन सुनाया और उन्हें विभाव-दशा की संगति छुड़ाई । आत्मपति अपनी पत्नी शुद्ध चेतना के घर में क्षायिक भाव से तेरहवें गुणस्थानक में आये। उन्होंने केवलज्ञान एवं केवलदर्शन रूप क्षायिक भाव से शुद्ध चेतना का आलिंगन किया। प्रात्मा तथा शुद्ध चेतना की एकता हो गई। आनन्द के घनभूत चेतन के शुद्ध चेतना के घर में आते ही अन्तर के क्षायिक भाव के सद्गुणों की वसन्त ऋतु खिल उठी। आत्मा के असंख्यात प्रदेशों में समय-समय पर अनन्त गुना सुख प्रकट होने लगा। आत्मा परमात्मा रूप हो गया । (२) __(राग-वसन्त) प्यारे जोवन एह साच जान । उत बरकत नांहि तिल समान । १ ॥ उत न मगो हित नाहिने एक । इत पकर लाल छरी खरे विवेक ।। २ ॥ उत सठ ठग माया मान दुब । इत ऋजुता मृदुता निज कुटुब ।। ३ ।।
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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