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श्री आनन्दघन पदावली-१७७
अर्थ-अतः.हे प्रियतम चेतन! इस कुबुद्धि को तो पीछे रखो, इसका नाम भी मत लो और सद्गुणों की भण्डार मीठी सुमति से अपना मेल बढ़ाओ ॥ ४ ॥
विवेचन-सुमति चेतन को कहती है कि इस कुबुद्धि की संगति से आपकी अत्यन्त हानि है। अतः हे सद्गुणों के धाम ! आप सुमति से अपना मेल बढ़ाओ। .
अर्थ-इस पर अानन्द-धाम चेतन ने समता को अपनी स्वामिनी बनाकर उसे अपने घर का सम्पूर्ण अधिकार दे दिया। उन्होंने अपने जीवन को समतामय बना लिया।
विवेचन-सुमति को आत्म-तत्त्व की प्राप्ति कराने वाला विवेक है। मुनिवरों की संगति करने से जैनागमों का रहस्य ज्ञात होता है ।
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(राग-सोरठ) अण जोवंता लाख, जोवो तो एको नहीं । लाधी जोवण साख, वाल्हा 'विणे अहिले गई ।। साखी । वारू रे नान्ही बहू ए, मन गमतो ए कीधु । पेट में पेसी मस्तक रहँसी, बैरी सांईऽउ सामीजी नइ दीधु ॥ १ ॥ खोलइ बइठी मीठु बोले, कांइ अनुभौ अमृत पीधु। छाने छाने छमकलड़ां, करती पाखइ मनडु वीधु ॥ २ ॥ लोक अलोक प्रकाशक छइयो, जणतां कारिज सीधु। अंगो अंग रंग भरि रमतां, आनन्दघन पद लीधु ॥ ३ ॥
___ अर्थ -समता कहती है कि जब तक किसी कार्य को करने की ओर ध्यान नहीं दिया जाता, पुरुषार्थ नहीं किया जाता, तब तक लाखों विघ्नबाधाएँ सामने खड़ी नजर आती हैं और जब कार्य करने के लिए पुरुषार्थ किया जाता है तब समस्त विघ्न-बाधाएँ दूर हो जाती हैं।
जब पुरुषार्थ रूपी यौवन की फसल प्राप्त हो गई, तब बिना प्रियतम (चेतन) के यह फसल व्यर्थ जा रही है ।। साखी ॥