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________________ श्री आनन्दघन पदावली-१७५ अर्थ- यह लकड़ी लेकर चलने लगा है। तेरे नेत्र क्या फूट गये हैं ? क्या तू नहीं जानता कि सम्यक्त्व प्रकट होने पर तेरी मृत्यु निश्चित ही है। अब रोटी कौन देगा? किसी भी प्रकार का सम्यक्त्व प्रकट होने पर अनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ एवं मिथ्यात्व मोहनीय, मिश्र मोहनीय तथा सम्यत्क्व मोहनीय – इन सात प्रकृति रूप तेरा भोजन बन्द हो गया है। अब मुझे रोटी देने वाला (पनपाने वाला) कोई नहीं है। अतः तेरी मृत्यु सिर पर आ गई है ।।२।। _ विवेचन - सूमति मिथ्यात्व को कहती है कि तू तो मृत्युशय्या पर पड़ा है, पुत्र के बिना तुझे कौन रोटी देगा? अतः हे स्वामी ! तू समझ और अविरति रूपी डण्डे से पुत्र को मत पीट। यह हमारे प्रष्ट कर्मों के ऋण को चुका देगा। भवितव्यता के योग से यह पुत्र प्राप्त हुआ है तो उस पर प्रेम रखकर हमें उसकी रक्षा करनी चाहिए। ____ अर्थ -यह पुत्र पाँच महाव्रतों, उनकी पच्चीस भावनाओं तथा पचास प्रकार के तप पर सीधे-सादे वचन बोलता है। सुमति कहती है कि हे आनन्दघन प्रभो! यह सम्यक्त्व तो जन्म-जन्म से आपका दास है। आप जन्म-जन्मान्तर से इसके स्वजन-स्नेही हैं ।। ३ ।। .: विवेचन-सुमति कहती है कि यह सम्यक्त्व रूप पुत्र आपकी सेवा करेगा। जब तक आपको संसार में जन्म लेना पड़ेगा, तब तक भव-भव में यह आपका आधार है। अतः आप कृपा करके सम्यक्त्व रूप पुत्र का द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव योग से पालन करो। इसका भावनाओं से पोषण करो, समता रूपी जल से इसे स्नान कराओ और इसे शुद्ध प्रेम भाव से देखो। ( ६६ ) ( राग-वसन्त ) आ कुबुद्धि कूबरी कवन जात, जिहाँ रीझे चेतन ज्ञान गात । प्रा० ॥ १ ॥ मा कुच्छित साख विशेष पाइ, परम सिद्धिरस छारि जाइ । आ० ।। २ ।। जिहाँ अंगु गुन कछु और नाहि, गले पड़ेगी पलक मांहि । प्रा० ॥ ३ ॥
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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