________________
श्री आनन्दघन पदावली-६१
.. ( ३५ )
( राग गोड़ी-जकड़ी ) राशि शशि तारा कला, जोसी जोइन जोस । रमता समता कब मिले, भागे विरहा सोस ।। पिय विरण कौन मिटावे रे, विरह व्यथा असराल ।। नींद निमाणी आँखितें रे, नाठी मुझ दुःख देख । दीपक सिर डोले खड़ो प्यारे, तन थिर धरे न निमेष ।।
. पिया० ।। १ ।। ससि सराण तारा जगी रे, विनगी दामिनी तेग । रयनी दयन मत दगो, मयण सयण विण वेग ।।
पिया० ।। २ ।। तन पंजर झूरइ पर्यो रे, उड़ि न सके जिउ हंस । विरहानल जाला जली प्यारे, पंख मूल निरवंश ।।
__ . पिया० ।। ३ ।। उसास सास बढ़ाउ कोरे, वाद वदे निसि रांड । न मिटे उसासा मनी प्यारे, हटकै न रयणी मांड ॥ .
. पिया० ।। ४ ।। इह विधि छै जे घर धणी रे, उससूं रहे उदास । हर विधि प्राइ पुरी करे, प्रानन्दघन प्रभु आस ।।
- पिया० ।। ५ ।।
अर्थ-समता श्रद्धा, अनुभव आदि को अपनी विरह व्यथा कह-कह कर थक गई। चेतन स्वामी के वियोग में अत्यन्त दुःखी होकर वह ज्ञानी पुरुष ज्योतिषी को पूछती है कि हे ज्योतिषी! मेरा चेतन-स्वामी से मिलाप कैसे और कब होगा? समता कहतो है-हे ज्योतिषी ! तुम अपनी पोथी, पंचांग के द्वारा राशि, चन्द्र तथा अन्य ग्रहों का बल देख कर बताओ कि मेरे रमताराम चेतन-स्वामी मुझे कब मिलेंगे, ताकि मेरा विरह शोषण दूर हो।