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* अनुभूतिजन्य शब्दों की शृखला ने श्री नमस्कार महा'मन्त्रादिक के स्वरूप को समझाने में, संसार की असारता को दिखाने में एवं जिनपद-स्तवनादिक की रम्य रचना करने में अनमोल होरे जैसे समय का सदुपयोग सक्षम रहकर के सुन्दर किया है। जिसकी अभिव्यक्ति उनको रचनामों में अनेक जगह संकेतरूप में मिलती है। ऐसे श्री प्रानन्दघनजी महाराज की पदस्तवनादिक को उत्तम रचनाएँ साधकों को प्रबल प्रेरणा देकर साध्य के प्रति सदैव जागरूक रखती हैं। आपके जीवन में प्रतिक्षण प्रात्मानुभूति रूप देदीप्य
मान दीपक सदा जलता रहा है। .. प्रस्तुत ग्रन्थ-श्री प्रानन्दघन-पदावली में हिन्दी भावार्थ का सुन्दर प्रालेखन सिरोही-निवासी श्रावक श्रीमान् नैनमल विनयचन्द्रजी सुराणा ने किया है।
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॥ श्रीरस्तु ।