________________
उववाइय सुत्तं सू० १७ महीनों तक गांव में एक दिन रात तथा नगर में पांच रात निवास करते थे। अर्थात् पाँचवें सप्ताह में विहार ( उनतीस दिन ) करते थे। चन्दन जैसे अपने को काटने वाले बसूले को भी सुगन्धित बना देता है क्यों कि चन्दन का स्वभाव ही सुगन्धित बना देना है, उसी प्रकार वे अनगार—साधु अपने अपकारी के प्रति भी उपकार करने की वृत्ति रखते थे। अथवा वे अपकारी और उपकारी इन दोनों के प्रति राग-द्वेष-रहित समान भाव लिए रहते थे। वे मिट्टी के ढेले और स्वर्ण को एक समान समझने वाले तथा सुख
और दुःख में समान भाव रखने वाले थे। वे ऐहिक तथा पारलौकिक आसक्ति से रहित ( अनासक्त ) थे। वे नारक, तिर्य च, मनुष्य और देवचतुर्विध गति रूप संसार के पार पहुंचने वाले, अर्थात् मोक्षाभिगामी तथा कम का नाश करने हेतु समुद्यत होते हुए विचरण करते थे ॥ १७ ॥
These monks had no obstruction whatsoever at any place. Obstruction has been stated to be of four types, viz., of object, of space, of time and of cognition. As to object, obstruction from living organism, lifeless objects and mixed objects ; as to space, obstruction from village, town, forest, farm, room, courtyard, etc.; as to time, obstruction from eternal time (kāla), unit of time (såmaya), avalikå, till ayana or any other longer period ; as .to cognition, obstruction from anger, pride, attachment, greed, fear and laughter. Leaving aside the four months of the rainy season, they never stayed in a village beyond one night and in a town beyond five nights. They were always alike to excreta and sandal paste, to a lump of clay and a bar of gold, to pleasure and pain. They were free from attachment to this life as well as life hereafter. They lived with a single purpose which was to annihilate totally the bondage of karma which would entitle them to liberation. '17