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उववाइय सुत्तं सू० १७
of gems or even a heavenly shop (kutrikāpaṇa) where one could get anything. They were capable to defeat their adversaries. They were the masters of eleven Angas. They possessed encylopaedic knowledge (covering texts like Prakirṇaka, Srutādeza, Srutaniryukti, etc). They knew all combinations of words as well as all languages. Though not yet Jinas themselves, they were very near to them. Like an omniscient personality, they propounded the fundamentals (of the Śramaņa path) and lived on by enriching their souls through restraint and penance. 16
अनगारों के गुण
Monks and their qualities
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तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे अणगारा भगवंतो ईरिआसमिआ भासासमिआ एसणासमिआ आदाण- भंड-मत्त - निक्खेवणासमिआ उच्चार- पासवण - खेल - सिंघाण - जल्ल - पारिट्ठावणिया समिआ मणगुत्ता वयगुत्ता कायगुत्ता गुत्ता गुत्तिदिया गुत्तबंभयारी अममा अकिंचणा छिण्णग्गंथा छिण्णसोआ निरुवलेवा |
उस काल ( वर्तमान अवसर्पिणी ) उस समय ( चतुर्थ आरे ) म श्रमण भगवान् महावीर के अन्तेवासी शिष्य बहुत से अनगार- - साधु थे । वे ईर्ष्यागमन, आगमन, हलन चलन आदि क्रिया, भाषा का विवेकपूर्वक प्रयोग, चार प्रकार के आहारों की गवेषणा, निर्दोष रूप से ग्रहण, वस्त्र, पात्र आदि उपकरणों को उठाना रखना तथा मल, मूत्र, खंखार, नाक का मैल को त्यागने में यतनशील थे । वे मन, वचन और काय की क्रियाओं का संयम करने वाले थे, शब्द, वर्ण, गन्ध आदि विषयों में राग रहित अर्थात् अन्तर्मुख, इन्द्रियों को उनके विषय व्यापार में लगाने की उत्सुकता से रहित, नियमोपनियम सहित - नववाड़ पूर्वक ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले, महत्व