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________________ उववाइय सुत्तं सू० ४२ 289 गौतम : हंता फुडे । महावीर : छउमत्थे णं गोयमा! मणुस्से तेसिं घाणपोग्गलाणं किंचि वण्णेणं वण्णं जाव...जाणंति पासंति ? गौतम : भगवं! णो इण8 सम8। महावीर : से तेण?णं गोयमा ! एवं वुच्चइ छउमत्थे णं मणुस्से तेसि णिज्जरापोग्गलाणं नो किंचि वण्णेणं वण्णं जाव... जाणइ पासइ । ए सुहुमा णं ते पोग्गला पण्णत्ता। समणाउसो ! सव्वलोयंपि य णं ते फुसित्ता णं चिट्ठति । एक अत्यन्त ऋद्धिमान, परम द्युतिमान, अत्यधिक बलवान, महान यशस्वी, बहुत सुखी, विशेष प्रभावशाली, देव चन्दन, केसर आदि विलेपन के योग्य सुगन्धित द्रव्य से परिपूर्ण भरे हुए डिब्बे को लेता है। उसे लेकरखोलता है। खोलकर...यावत् उस सुगन्धित द्रव्य को सर्वत्र बिखेरता हुआ, तीन बार चुटकी बजाने जितने समय में सम्पूर्ण जम्बूद्वीप नामक द्वीप की इक्कीस बार परिक्रमाएँ कर तुरन्त आ जाता है। तो हे गौतम! क्या .. समग्र जम्बूद्वीप उन घाण पुद्गलों-सुगन्धित परमाणुओं से स्पृष्ट-व्याप्त हो जाता है ? . गौतम : हाँ भगवन् ! हो जाता है । महावीर : हे गौतम ! क्या छद्मस्थ-विशिष्ट ज्ञान-केवल ज्ञान से रहित या कर्मावरण युक्त मनुष्य घाण पुद्गलों-सुगन्धित-परमाणुगों को वर्ण रूप से वर्ण...यावत् आदि को जरा भी जानता है, देखता है ? गौतम : भगवन् ! ऐसा संभव नहीं है । महावीर : गौतम ! इसी अभिप्राय से यह कहा जाता है कि छद्मस्थकमविरण से युक्त मनुष्य उन निर्जराप्रधान-खिरे हुए पुदगलों के वणं रूप से वर्ण को...यावत आदि को जरा भी नहीं जान पाता है, नहीं देख पाता है। आयुष्मान श्रमण ! वे सम्पूर्ण लोक को स्पृष्ट-स्पर्श कर स्थिर रहते हैं। 19 .
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
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