________________
278
Uvavaiya Suttam Sū. 41
णिग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थप डिग्गहकंबलपायपु छणणं ओसहभे सज्जेणं पडिहारएण य पीढफलगसेज्जा - संथारएणं पडिलाभमाणा विहति ।
3
वे उन्नत स्फटिक के सदृश निर्मल चित्तवाले, अपावृतद्वार - जिनके घर के दरवाजे कभी भी बन्द नहीं रहते हों अर्थात् खुले रहते हो, त्यक्तान्तःपुर गृहद्वार प्रवेश - सभ्य जनों के आवागमन के कारण घर के भीतरी भाग में उनका प्रविष्ट होना, जिन्हें प्रिय लगता हो अथवा अन्तःपुर में जिन का प्रवेश प्रीतिकर हो, वे चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन प्रतिपूर्ण - परिपूर्ण पौषध- आत्मा की पुष्टि के लिये आहार, अब्रह्म आदि चार तरह के त्याग की एक अहर्निश की साधना का सम्यक् रूप से — निर्दोषपूर्वक अनुपालन करते हुये, श्रमण-निर्ग्रन्थों को प्रासुक - अचित्त, एषणीय - ग्रहण करने योग्य निर्दोष, अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, आहार, वस्त्र, पात्र, कम्बल, पाद प्रोच्छन, औषध - जड़ी बूटी आदि वनौषधि या एक द्रव्याश्रित वस्तु, भैषज – तैयार औषधि या अनेक द्रव्यों की समुदाय रूप वस्तु, प्रतिहारिक — लेकर वापस लौटा देने योग्य वस्तु, पाट, बाजोट, निवास-स्थान बिछाने के लिये घास आदि द्वारा प्रतिलाभित करते हुए विहार करते हैं - जीवन-यापन करते हैं ।
Whose heart is as stainless as crystal, who never shut their doors, whose entry into any one's harem, household or door is welcome, who practise with purity pausadha (living temporarily like a monk) on every fourteenth, eighth, newmoon and full-moon days and provide pure and blemish-free food, drink, dainties and delicacies, cloth, bowls, blanket, duster, medicine ( single object ), medicine ( compound ) and objects returnable after use, such as, cushion, stool, residence and wooden plank to lie upon, and live on like this.
विहरिता भत्तं पच्चक्खति । ते बहूई भत्ताई अणसणाए छेदिति । छेदित्ता आलोइय पडिक्कंता समाहिपत्ता कालमासे