________________
उववाइय सुत्तं सू० ४१
279 कालं किच्चा उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहिं तेसिं गई बावीसं सागरोवमाई ठिई। आराया। सेसं तहेव ॥२०॥
इस प्रकार जीवन-यापन कर वे अन्ततः आहार का त्याग करते हैं, बहुत से भोजन-काल अनशन-निराहार द्वारा विच्छिन्न कर देते हैं अर्थात् बहुत दिनों तक बिना खाये-पीये रहते हैं। वैसा कर वे पाप-स्थानों की आलोचना और प्रतिक्रमण करते हैं। यों समाधि--शान्ति, चित्त-विशुद्धि प्राप्त कर मृत्युकाल आ जाने पर देह त्याग कर उत्कृष्ट रूप से अच्युत कल्प नामक बारहवें देवलोक में देवरूप से उत्पन्न होते हैं। अपने स्थान के अनुसार वहां उन की गति होती है। वहां उन की स्थिति-आयुष्य-परिमाण बाईस सागरोपम प्रमाण होती है। वे परलोक के आराधक होते हैं। अवशेष वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिये। ॥२०॥
At appropriate time, they practise fast and miss many a meal, discuss, make atonement and enter into trance, then at a point in eternal time, they pass away to be born in Acyutakalpa as celestial beings, with a span of life as long as twenty-two sāgaropamas. They propitiate the next birth. The rest as before. 20
अनारम्भिओं का उपपात
Rebirth of those who kill not etc.
. से जे इमे गामागर जाव...सण्णिवेसेसु मणुआ भवंति। तं जहा-अणारंभा अपरिग्गहा धम्मिया जाव...कप्पेमाणा सुसीला सुव्वया सुपडियाणंदा साहू सव्वाओ पाणाइवाआओ पडिविरया