________________
276
Uvavaiya Suttam Sh. 41
आसवसंवरनिज्जर
. अभिगयजीवाजीवा उवलद्धपुण्णपावा किरिया अहिगरणबंधमोक्खकुसला।
जिन्होंने जीव, अजीव आदि पदार्थों के स्वरूप को अनेक दृष्टियों से भलीभांति समझा है, पुण्य और पप के अन्तर-रहस्य को पूर्णतः जाना हैप्राप्त किया है और वे आश्रव, संबर, निर्जरा, क्रिया, अधिकरण, बन्ध तथा मोक्ष में कुशल-प्रवीण हैं अर्थात् जिन्होंने इन सब को भली-भांति . अवगत किया है।
Who are well acquainted with the distinction between soul and non-soul ( matter ), who have realised the distinction between virtue and vice, who know well how to check the influx of fresh karma, who have partly uprooted their karmas, 'who know activities, instruments, bondage and liberation.
असहेज्जाओ देवासुरणागसु वन्नजक्खरक्खसकिन्नरकिंपुरिसगरुलगंधव्वमहोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अणइक्कमणिज्जा।
जो किसी दूसरे की सहायता के इच्छुक नहीं है--आत्म निर्भर हैं, जो देव-वैमानिक देव, असुर, नाग कुमार-भवन पति जाति के देव, सुवर्णज्योतिष्क देव, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष-व्यन्तर जाति के देव, गरूड़सुवर्ण कुमार, गन्धर्व-महोरग-व्यन्तर देवविशेष, आदि देवों द्वारा निर्ग्रन्थप्रवचन-प्राणी की अन्तर्वर्ती ग्रन्थियों को छुड़ाने वाला आत्मानुशासनमय उपदेश से अनतिक्रमणीय-विचलित नहीं किये जा सकने योग्य है ।
Who are not desirous of any help from others, who are never swayed from the teachings of the Nirgranthas by the words of the gods, Asurakumāras, Nāgakumāras, Jyotiskas, Yaksas, Raksasas, Kinnaras, Kimpurusas, Garrdas, •Gandharvas, Mahoragas.