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उववाइय सुत्तं सू० ४१
275 वे अंशतः स्थूल रूप में जीवन भर के लिये कूटने, पीटने, तर्जितकड़े वचनों द्वारा भर्त्सना करने, ताड़ना करने, थप्पड़ आदि के द्वारा प्रताड़ित करने, वध-प्राण लेने, बन्ध-रस्सी आदि से बांधने, परिक्लेश-पीड़ा व्यथा देने से प्रतिविरत-निवत होते हैं। अंशतः सूक्ष्म रूप से अप्रतिविरतअनिवृत होते हैं। वे अंशतः स्थूल रूप में जीवन भर के लिये स्नान, मर्दन, बर्णक, विलेपन, शब्द, स्पर्श, रस, रूप, गन्ध, माला और अलंकार से निवृत्त होते हैं और अंशतः सूक्ष्म रूप से अनिवृत्त होते हैं ।
Who keep aside in part from activities like beating, hurting, rebuking, giving a slap, killing, binding with a rope, and causing pain, and in part do not so desist, and like that for life, who desist in part from bath, rubbing, painting, besmearing, sound, touch, taste, shape, smell, garlands and ornaments, and in part do not so desist, and like that for life.
जेयावणे तहप्पगारा सावज्जजोगोबहिया कम्मंता परपाणपरियावणकरा कज्जंति तंओ जाव...एकच्चाओ अपडिविरया तं जहा--समणोवासगा भवंति ।
___ इसी प्रकार और भी निन्दनीय, पापात्मक प्रवृत्ति से युक्त, छल-प्रपंच के प्रयोजन से युक्त, दूसरों के प्राणों को कष्टा पहुंचाने वाले कर्म करते हैं । उनसे...यावत् जीवन भर के लिए अंशतः सूक्ष्म रूप से अप्रतिविरत-अनिवत होते हैं जैसे कि श्रमणोपासक--श्रावक होते हैं ।
And likewise, from many sinful and condemnable deeds, they desist in part, and in part do not so desist, from deceit and crookedness, or anything which is painful to others, they desist in part, and in part do not so desist, like the followers of Bramaņa path.