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Uvavaiya Suttam so. 41
. तेणं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाइं परियायं पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहिं तेसि गती बावीसं सागरोवमाइं ठिती। अणाराहगा। सेसं तं चेव ॥१७॥
वे इस प्रकार के आचार द्वारा विहार करते हुए-जीवन व्यतीत करते हुए बहुत वर्ष तक आजीविक-पर्याय का पालन कर मृत्युकाल आ जाने पर देहत्याग कर उत्कृष्ट अच्युत कल्प नामक बारहवें देवलोक में देव रूप में उत्पन्न होते हैं। वहाँ अपने स्थान के अनुरूप उनकी गति होती है । वहां उनकी स्थिति-आयुष्य परिमाण बाईस सागरोपम प्रमाण होती है। वे आराधक नहीं होते हैं। शेष वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिये ॥१७।।
Practising penance like this for many years, they pass away at a point in eternal time, to take birth in Acyutakalpa as celestial beings. The length of their stay there is 22 sāgaropamas. They do not propitiate next birth. The rest as before. 17
अत्क्कोसियों का उपपात ।
Rebirth of those who extol themselves
से जे इमे गामागर जाव...सण्णिवेसेसु पव्वइया समणा भवंति तं जहा--अत्तुक्कोसिया परपरिवाइया भूइकम्मिया भुज्जो भुज्जो कोउयकारका । ते णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति । पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइय अपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे आभिओगिएसु देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहिं तेसि गई बावीसं सागरोवमाई ठिइ। परलोगस्स अणारागा सेसं तं चेव ।।१८।।