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Uvavaiya Suttam Si. 41
· जाति स्मरण ज्ञान के उत्पन्न होते ही वे स्वयं पांच अणुव्रत-स्थूल प्राणातिपात विरमण, स्थूल मषावाद विरमण, स्थूल अदत्तादान विरमण, स्वदार संतोष और इच्छा परिमाण स्वीकार करते हैं। ऐसा कर-स्वीकार कर अनेकविध शिक्षावत-सामायिक, देशावकाशिक, पौषधोपवास और अतिथि संविभाग, गुणव्रत-अनर्थदण्ड विरमण, दिग्व्रत और उपभोग-परिभोग परिमाण, विरमण-विरति, प्रत्याख्यान-परित्याग, पौषधोपवास आदि द्वारा अपनी आत्मा को भावित-अनुप्राणित करते हुए बहुत वर्षों तक स्व आयुष्य . का पालन करते हैं अर्थात जीवित रहते हैं।
With the recovery of a long memory of past lives, they themselves court the five lesser vows, and live for many years practising restraints, controls and atonement, living temporarily like a monk and observing fasts.
पालित्ता भत्तं पच्चक्खंति । बहूई भत्ताई अणसणाए छेयंति । छेइत्ता आलोइय पडिक्कता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं सहस्सारे कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहिं तेसि गती अट्ठारस सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता । परलोगस्स आराहगा । सेसं तं चेव ॥१६॥
आयुष्य का पालन कर भक्त का प्रत्याख्यान करते हैं। बहुत से भोजन के समयों को बिना खाय-पीये ही काटते हैं। ऐसा कर फिर वे अपने पाप स्थानों की आलोचना कर, उन से प्रतिक्रमण-प्रतिनिवृत्त होकर समाधि-अवस्था प्राप्त करते हैं और मृत्यु काल आ जाने पर देह त्याग कर उत्कृष्ट सहस्रार कल्प नामक आठवें देवलोक में देव रूप में उत्पन्न होते हैं। वहाँ अपने स्थान के अनुरूप उनकी गति होती है। वहाँ उनकी स्थिति-आयुष्य परिमाण अठारह सागरोपम प्रमाण होती है। वे परलोक के आराधक होते हैं। अवशेष वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिये। ॥१६॥ .
They give up food and miss many a meal. They discuss their lapses and be careful not to indulge in them any more.