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उववाइय सुत्तं सू०
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बहत्तर कलाएँ इस प्रकार हैं
कला,
(२) गणित, (३) रूपनाटय - अभिनय करने की कला, (६) वाद्य - वीणा, दुन्दभि आदि स्वरगत - स्वर जानने की कला, (८) पुष्करसमताल - गान व ताल
( ९ ) द्यूत - जुआ खेलने की कला,
(१) लेख – लेख लिखने की रूप सजाने की कला, (४) ( ५ ) गीत -गीत गाने की कला, बजाने की कला, (७) गत - मृदंग आदि वाद्य बजाने की कला, के लयात्मक समीकरण की कला, (१०) ( ११ ) जनवाद - वार्तालाप की कला, ( १२ ) पाशक - पासा फेंकने की विशिष्ट कली, (१३) अष्टापद - विशेष प्रकार की द्यूत-क्रीड़ा, (१४) पौरस्कृत्य - नगर की रक्षा, व्यवस्था की कला, (१५) उदक मृत्तिका - जल और मिट्टी के मिश्रण से वस्तु बनाने की कला, (१६) अन्नविधि - अन्न उत्पन्न करने की कला, (१७) पानविधि - पानी को उत्पन्न करने की कला, (१८) वस्त्रविधि - वस्त्र बनाने की कला, ( १९ ) विलेपनविधि - शरीर पर चन्दन आदि द्रव्यों से लेप करने की कला, ( २० ) शयनविधि - शय्या निर्माण करने की कला, (२१) आर्या - आर्या आदि मात्रिक छन्द करने की कला, (२२) प्रहेलिका• प्रहेलिका निर्माण की कला, ( २३ ) मागधिका - छन्द विशेष बनाने की कला, (२४) गाथा - प्राकृत भाषा में गाथा निर्माण की कला, (२५) गीतिका - गेय काव्य रचने की कला, (२६) श्लोक - श्लोक बनाने की कला, (२७) हिरण्ययुक्ति - चांदी बनाने की कला, ( २८ ) सुवर्णयुक्ति - सोना बनाने की कला, (२९) गन्धयुक्ति - सुगन्धित पदार्थ बनाने की कला, (३०) चूर्णयुक्ति - विभिन्न औषधियों द्वारा निर्मित चूर्ण डाल कर औरों को वश में करना, (३१) आभरण विधि - अलंकार बनाने की कला, (३२) तरूणीप्रतिकर्म - स्त्री को शिक्षा देने की कला, ( ३३ ) स्त्रीलक्षण - स्त्री के लक्षण जानने की (३४) पुरुषलक्षण - पुरुष के लक्षण जानने की कला, (३५) हयलक्षण - घोड़े के लक्षण जानने की कला, (३६) गजलक्षण - हाथी के लक्षण जानने की कला, ( ३७ ) गोलक्षण - गाय के लक्षण जानने की कला, (३८) कुक्कुटलक्षण - मुर्गे के लक्षण जानने की कला, ( ३९ ) चक्रलक्षण - चक्र के लक्षण जानने की कला, (४०) छत्रलक्षण – छत्र के लक्षण जानने की कला, (४१)
कला,
चर्मलक्षण - चर्म के