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Uvavaiya Suttam Sti. 40 लक्षण जानने की कला, (४२) दण्डलक्षण- दण्ड लक्षण जानने की कला, (४३) असिलक्षण-तलवार के लक्षण जानने की कला; (४४) मणिलक्षण-मणि के लक्षण जानने की कला, (४५) कांकणीलक्षण-चक्रवर्ती के रत्न-विशेष के लक्षण जानने की कला, (४६) वास्तुविद्या-भवन निर्माण करने की कला, (४७) स्कन्धावारमान--शत्रु सेना को जीतने की कला, (४८) नगरमान-नगर का प्रमाण जानने की कला, (४९) वास्तुनिवेशन--भवनों के उपयोग के सम्बन्ध में जानने की कला, (५०) व्यूह--व्यूह रचने की कला, (५१) चार-प्रतिचार-- सैन्य का प्रमाण आदि जानने की कला, (५२) चक्रव्यूह-चक्र व्यह रचने की कला, (५३) गरुड़व्यूह-गरुड़ के आकार का व्यूह बनाने की कला, . (५४) शकट व्यूह--गाड़ी के आकार में सेना को स्थापित करने की कला, (५५) युद्ध--लड़ाई करने की कला, (५६) नियुद्ध-- पैदल युद्ध करने की कला, (५७) युद्धातियुद्ध-तलवार आदि फेंक कर. युद्ध करने की कला, (५८) मुष्टियुद्ध-मुक्कों से लड़ने की कला, (५९) बाहुयुद्ध-भुजाओं द्वारा लड़ने की कला, , (६०) लतायुद्धजसे बेल वक्ष पर चढ़ कर उसे जड़ से लेकर शिखर तक आवेष्टित कर लेती है, उसी प्रकार जहाँ योद्धा प्रतियोद्धा के शरीर को प्रगाढ़ रूप से उपदित कर भूमि पर गिरा देता है और उस पर चढ़ बैठता है, (६१) इषु शस्त्र--नाग बाण आदि के प्रयोग का ज्ञान, छुरा आदि फेंकने की कला, (६२) धनुर्वेद-धनुष-बाण सम्बन्धी कौशल होना, (६३) हिरण्यपाकचाँदी का पाक बनाने की कला, (६४) सुवर्णपाक-सोने का पाक बनान की कला, (६५) वृत्तखेल-रस्सी आदि पर चलकर खेल दिखान की कला, (६६) सूत्रखेल-सूत द्वारा खेल दिखाने की कला, (६७) नालिकाखेल-कमल के नाल का छेदन करना, (६८) पत्रच्छेद्यएक सौ आठ पत्तों में यथेष्ट संख्या के पत्तों को छेदने की कला, (६९) कटकच्छेद्य-कड़ा, कुण्डल आदि छेदने की कला, (७०) सजीवमत-मूछित को जीवित करने की कला, (७१) निर्जीव-जीवित को मृततुल्य करने की कला, (७२) शकुनरुत -पक्षी के शब्द से शुभाशुभ जानने की कला।
The 72 arts are as follows
(1) Art of writing, (2) Mathematics, (3) Art of decoration, (4) Acting, (5) Singing, (6) To play with musical