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उववाइय सुत्तं सू० ४० दारए दढपइण्णे णामेणं । तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो णांमधेज्जं करेहिति दढपइण्णे त्ति ।
उसके बाद उस बालक के माता-पिता पहले दिन कुलक्रम के अनुसार पुत्र-जन्म के योग्य अनुष्ठान करेंगे। दूसरे दिन 'चन्द्रसूर्य-दर्शनिका' नामक जन्मोत्सव करेंगे। छद्रे दिन 'जागरिका'-रात्रि जागरण नामक जन्मोत्सव करेंगे। ग्यारह दिन व्यतीत हो जाने पर वे जनन क्रिया सम्बन्धी अशुचि शोधन विधान से निवृत्त होंगे। बारहवें दिन माता-पिता यह बालक इस रूप से गुणों से सम्बन्धित, गुण निष्पन्न - गुणानुसार बनने वाला नाम संस्कार करेंगे। क्योंकि इस बालक के गर्भ में आते ही हमारी धार्मिक-श्रद्धा दृढ़ हुई थी, अतएव हमारा बालक यह 'दढपइण्ण'दृढ़प्रतिज्ञ नाम से संबोधित किया जाय । तब यह सोच कर माता-पिता उस बालक का नाम दृढ़प्रतिज्ञ रखेंगे।
Then on the first day after his birth, his parents will fulfil rituals which are conventional to his line ; on the second day, they will celebrate candra-sūrya-darśaniká, and jāgarika on the sixth day. On the completion of the eleventh day when the impurity of the house caused by the child birth is wiped clean, then, on the twelfth day, the parents will give him a name, they will think that since due to the coming of the boy we have acquired a firm resolve in religion, so let us name him Drdhapratijia (Firm in resolve ). So they will name him like that.
तं दढपइण्णं दारगं अम्मापियरो साइरेगष्टुवासजातगं जाणित्ता सोभणंसि तिहिकरणणक्खत्तमुहत्तंसि कलायरियस्स उवणेहिति । तए णं से कलायरिए तं दढपइण्णं दारगं लेहाइयाओ गणियप्पहाणाओ सउणरूयपज्जवसाणाओ बावत्तरि कलाओ सुत्ततो य अत्यतो य करणतो य सेहाविहिति सिक्खाविहिति ।