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उववाइय सुत्तं सू० ४०
249 विच्छड्डियपउरभत्तपाणाई बहुदासीदासगोमहिसगवेलगप्पभूयाइं बहु'जणस्स अपरिभूयाई। तहप्पगारेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चयाहिति ।
गौतम : भगवन् ! अम्बड़ देव उस देव लोक से आय-क्षय, भव-क्षय, और स्थिति-क्षय होने पर च्यवन कर कहाँ जायेगा? वह कहाँ उत्पन्न होगा ?
महावीर : गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में जो कुल हैं, वे धनाढ्यसमृद्ध, दीप्त-दीप्तिमान्, प्रभावशाली अथवा स्वाभिमानी, सम्पन्न, अनेकों भवन, शयन-ओढ़ने-बिछाने के वस्त्र, आसन-बैठने के उपकरण, यान-माल ढोने की गाड़ियाँ, वाहन-सवारियां आदि विपुल साधन-सामग्री से युक्त हैं। उनके यहां सोना, चाँदी, सिक्के आदि की कमी नहीं है, अर्थात् वे प्रचुर धन के स्वामी होते हैं। वे व्यावसायिक दृष्टि से धन के सम्यग् विनियोग तथा प्रयोग में संलग्न हैं, अर्थात् वे नीतिपूर्वक द्रव्य के उपार्जन में निरत होते हैं। उनके यहां भो न कर लेने के बाद भी अन्य बहुत से नौकर, नौकरानियों का भी गुजारा हो सके, इतना प्रचुर खाने-पीने के पदार्थ बचते हैं। वहां दास-दासियों की भी कमी नहीं हैं। गाय, भैंस, बैल, पाड़े, भेड़-बकरियाँ आदि होते हैं, अर्थात् वे पशुधन से समृद्ध हैं। वे लोगों द्वारा अतिरस्कृत होते हैं, अर्थात् वे इतने अधिक रोबिले होते हैं कि कोई उनका तिरस्कारअपमान करने का साहस नहीं कर सकता। अम्बड़ ( देव ) ऐसे कुलों में से किसी एक कुल में पुरुष रूप में उत्पन्न होगा।
Gautama : Bhante ! When, after having lived there for the stated time, his stay there comes to an end and he descends, where will he go and where will be be reborn ?
Mahavira : Gautama! In Mahavideha, there are various lines which are prosperous, dignified and famous.
They possess many mansions, couches and cushions, vehicles • and carriers. They have no dearth of treasures and bullion.
They make effective application of the means of earning more and more wealth. They prepare food and drink in such a huge quantity that after many are fed, the remnant is so profuse