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Uvavaiya Suttam Su 400
विरति के प्रकार, प्रत्याख्यान-परित्याग, पोषधोपवास-अध्यात्म साधना में अग्रसर होने के लिये यथाविधि आहार, मैथुन आदि का त्याग द्वारा अपनी आत्मा को भावित-अनुप्राणित करता हुआ-आत्मोन्मुख रहता हुआ बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक पर्याय--श्रावक धर्म का पालन करेगा। वैसा वर--पालन कर एक मास की संलेखना के द्वारा आत्मा में लीन हो कर तथा साठ भोजन--एक महीने का अनशन सम्पन्न कर आलोचना--दोषों का स्मरण कर, प्रतिक्रमण-दोषों से पीछे हटता हुआ, समाधि--शान्ति, चित्तविशुद्धि की प्राप्ति करता हुआ, मत्युकाल आने पर देह-त्याग करेगा। देह त्याग कर वह ब्रह्मलोक कल्प में देव रूप से उत्पन्न होगा। वहाँ अनेक देवों की आयु-स्थिति दस सागरोपम प्रमाण बतलाई गई है। तो वहाँ पर अम्बड देव की भी स्थिति-आयुष्य-परिमाण दस सागरोपम प्रमाण होगा। ...
Gautama : Bhante! Amvada Parivrājaka, when he passes away, where will he go, where will he be reborn ?
Mahavira : Gautama ! Amvada Parivrajaka will live like a monk in the Sramaņa order for many many years, practising vows, controls and restraints, desisting from attachment, etc., renouncing, practising pratikramana and fasts. Then he will undertake a fast for a month, wholly concentrate in self, pass through sixty meal-time without intake, recall his lapses, recede from them, be in complete trance, and pass away at a certain point in eternal time and be born as a celestial being in Brahmaloka Kalpa. There, in that heaven, many a god live as long as ten sāgaropamas, and Amvada will have a similar length of stay.
गौतम : से णं भंते ! अम्मडे देवे ताओ देवलोगाओ आउखएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति ? कहिं उववज्जिहिति ?
महावीर : गोयमा ! महाविदेहे वासे जाइं कुलाइं . भवंति अड्डाइं दित्ताइं वित्ताइं विच्छिण्णविउलभवणसयणासणजाणवाहणाई बहुधणजायरूबरययाइं आओगपओगसंपउत्ताई