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उववाइय सुतं सू० ४०
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न दिया हुआ नहीं। वैसा जल भी नहाने के लिये कल्पता है । हाथ, पैर, चरू - भोजन का पात्र, चमस - चम्मच धोने के लिये अथवा पीने के लिये नहीं । अम्बड़ को अर्हन्तों और अहंत् चैत्यों के अतिरिक्त अन्ययूथिक— निर्ग्रन्थ धर्म संघ के सिवाय, अन्य संघ से सम्बन्धित पुरुष, उनके देव, उन के द्वारा परिगृहीत — स्वीकृत चैत्यों को वन्दन करना, नमन करना.. यावत् उनकी पर्युपासना - अभ्यर्थना -- सान्निध्य लाभ लेना नहीं कल्पता है ।
Amvada aceepts water as much as one Magadha Adhaka that too flowing, till offered, to bathe, but not to wash, clean teeth, hands, feet, etc., nor to drink. Amvada does not court the company of the heretics nor worships their gods or their images, but worships only the Arthantas and their images.
गौतम : अम्मडे णं भंते! परिव्वायए कालमासे कालं किच्चा कहि गच्छिहिति ? कहि उववज्जिहिति ?
महावीर : गोयमा ! अम्मडे णं परिव्वायए उच्चावहि सीलव्व यगुणवेरमणपच्चक्खाणपोसहोव वासेहि अप्पाणं भावेमाणे बहूई वासाई समणोवासयपरियायं पाउणिहिति । पाउणिहित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं भूसित्ता सट्ठि भत्ताइं अणसणाए छेदित्ता आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववज्जिहिति । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । तत्थ णं अम्मडस्सवि देवस्स दस सागरोवमाइं ठिई ।
गौतम : हे भगवन् ! अम्बड़ परिव्राजक मृत्यु -- काल आने पर - देह त्याग कर कहाँ जायेगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ?
काल कर --
महावीर : गौतम ! अम्बड़ परिव्राजक उच्चावच -- उत्कृष्टअनुत्कृष्ट अर्थात् विशेष-सामान्य शीलव्रत, गुणव्रत, विरमण - रागादि से