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________________ 244 Uvavaiya Suttam Sh. 40 ठइत्तए इ वा रइत्तए इ वा कंतारभत्ते इ वा दुब्भिक्खत्ते इ वा पाहुणगभत्ते इ वा गिलाणभत्ते इ वा वद्दलियाभत्ते इ वा भोत्तए वा पाइत्तए वा। अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ मूलभोयणे वा जाव...बीयभोयणे वा भोत्तए वा पाइत्तए वा । अम्बड़ परिव्राजक को आगमिक-अपने लिये बनाया हुआ भोजन, . औद्देशिक- साधु के निमित्त बनाया गया भोजन, मिश्रजात-साधु और गहस्थ इन दोनों के उद्देश्य से तैयार किया गया भोजन, अध्यवपूर-- गृहस्थ के बनते हुए भोजन में साध के लिये अधिक मात्रा में निष्पादित भोजन, पूतिकर्म-आधा कर्मी आहार के अंश से मिश्रित भोजन, क्रीतकृतसाधु के निमित्त खरीद कर लिया गया, प्रामित्य-उधार लिया गया, अनिसृष्ट-घर के मुखिया या गृहस्वामी को बिना पूछे दिया जाने वाला, अभ्याहत-साधु के सम्मुख लाकर दिया जाता भोजन, स्थापित- अपने लिये अलग रखा हुआ भोजन, रचित-एक विशेष प्रकार का उद्दिष्टअपने लिये संस्कारित किया हुआ भोजन, कान्तार भक्त–जंगल पार करने के लिये घर से अपने पाथेय ( भाता ) के रूप में लिया हुआ भोजन, दुर्भिक्ष भक्त--दुर्भिक्ष के समय भिक्षुओं तथा अकाल पीड़ितों के निमित्त बनाया हुआ भोजन, ग्लान भक्त-रोगी के लिये बनाया हुआ भोजन या स्वयं रोगग्रस्त होते हुए आरोग्य हेतु दान रूप में दिया गया भोजन, वादलिक भक्त–दुर्दिन-बादल आदि से घिरे दिन में दरिद्र जनों के लिये बनाया गया भोजन, प्राघूर्णक भक्त–पाहुनों के लिये तैयार किया गया भोजन ( अम्बड़ परिव्राजक को ) खाना-पीना नहीं कल्पता है। इसी प्रकार अम्बड़ परिव्राजक को मूलमय भोजन ( कन्द फल हरे तृण ), बीजमय भोजन-खाना पीना नहीं कल्पता है। ऐसा करना उसके लिये कल्पनीय नहीं है। Amyada does not accept food prepared by householder for self, prepared for a monk, prepared for householder and a monk, increased while cooking to make an offer to a monk, mixed with food prepared for self, purchased, borrowed, offered without the knowledge and permission of the master of the household, brought from elsewhere after the arrival of
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
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