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________________ उववाइय सुत्त सू० ३८ 229 ___उन परिव्राजकों के लिये मगध देश के तोल के अनुसार आधा आढक जल लेना कल्पता है। वह जल भी बहता हुआ हो, एक स्थान पर बन्द या बंधा हुआ नहीं अर्थात् बहती हुई नदी का आधा आढक परिमाण जल लेना उनके लिये कल्पनीय है ।...यावत् बिना दिया हुआ ( जल ) ग्राह्य नहीं है अर्थात् पीने के लिये कल्प्य नहीं है। वह जल भी केवल हाथ, पैर, भोजन का पात्र, चम्मच या काठ की कूड़छी, धोने के लिये ग्राह्य है, पीने के लिये अथवा नहाने के लिये नहीं। Who are allowed to take half a Magadha adhaka water, that too from a flow, not a pool, till not ungiven, to wash one's hands, feet, vessels, etc., but not to drink nor to bathe. - ते णं परिव्वायगा एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा बहूई वासाई परियायं पाउणंति। बहूइ वासाइं परियायं पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई तहि तेसि ठिई दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। सेसं तं चेव ।।१२।। सू० ३८ ॥ वे परिव्राजक इस प्रकार की चर्या अथवा आचार द्वारा विचरण करते हुए बहुत वर्षों तक पर्याय-परिव्राजक धर्म का पालन करते हैं। परिव्राजक-पर्याय का पालन कर मत्य काल आने पर शरीर त्यागकर उत्कृष्ट ब्रह्मलोक कल्प में पांचवें स्वर्ग में देव रूप से उत्पन्न होते हैं। प्राप्त देवलोक के अनुरूप उनकी गति और स्थिति होती है। वहाँ उनकी स्थिति–आयुष्य परिमाण दस सागरोपम है, ऐसा बतलाया गया है। अवशेष वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिये ॥ १२ ॥ सू० ३८॥ The Parivrājakas living like this, fully bearing this state for many a year, at a certain point in the eternal time are born again in Brabmaloka as celestial beings. Their
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
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