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Uvavaiya Suttarth sa. 38
अथवा कुंकुम-केशर से शरीर को लिप्त करना नहीं कल्पता है। वैसा करना उनके लिये वर्जित है। उन परिव्राजकों के लिये मगध देश के तोल के अनुसार एक प्रस्थक जल ग्रहण करना कल्पता है। वह भी बहता हुआ हो, एक स्थान पर बँधा हुआ नहीं हो अर्थात् प्रवहमान केवल एक प्रस्थकपरिमाण पानी उनके लिये कल्पनीय है, तालाब, जलाशय आदि का बन्द जल नहीं। वह जल भी यदि निर्मल भूमि का हो, तभी ग्राह्य है, यदि वह जल कीचड़युक्त हो तो वह ग्रहण करने योग्य नहीं है। जल अति. स्वच्छ-गन्दा नहीं होने के साथ-साथ वह बहुत प्रसन्न-साफ एवं अतीव निर्मल हो, तभी ग्राह्य है, अन्यथा नहीं, वह परिपूत-वस्त्र से छाना हुआ हो तो उनके ग्राह्य है, बिना छाना हुआ नहीं, कोई दाता के द्वारा उन्हें दे तभी ग्राह्य है बिना दिया हुआ नहीं। वह जल भी केवल पीने को ही ग्राह्य है, किन्तु हाथ, पैर, भोजन का पात्र, काठ की कुड़छी या चम्मच धोने के लिये या नहाने के लिये नहीं।
Who do not place on their body, except one on the ears made from flowers, any other ornament made from threaded flowers, or flowers wrapped together or flowers threaded in a thin stick or flowers whose stalks are entangled with one another, who do not rub their bodies, except with the Gangā clay, with any other, agaru, sandal or kumkum, who do not drink water more than a Mägadha prasthaka (a weight ), that too from a flowing stream, not a stagnant pool, with a pure soil underneath, not with moss, absolutely clean, not dirty, passed through cloth, not otherwise, offered by some one, not usurped, just to drink, not to wash one's hands, feet, vessels, etc, not to bathe.
तेसि णं परिव्वायगाणं कप्पइ मागहए अद्धाढए जलस्स पडिग्गाहित्तए। सेऽविय वहमाणे णो चेव णं अवहमाणे । जाव...णो चेव णं अदिण्णे । सेऽविय हत्थपायचरुचमसपक्खालणट्ठयाए णो चेव णं पिबित्तए सिणाइत्तए वा।