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Uvavaiya Suttam Sa. 38
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तन्मात्राएँ, एकादश इन्द्रिय, पंच महाभूत इन पच्चीस तत्त्वों में श्रद्धाशील, योगी - हठ यो के अनुष्ठाता, कापिल - कपिल महर्षि को अपनी परम्परा का प्रथम प्रवर्तक मानने वाले, निरीश्वरवादी - सांख्यमत के अनुयायी, भार्गव -- भृगु ऋषि परम्परा के अनुसर्ता, हंस- -चार प्रकार के परिव्राजक यति, परमहंस - पर्वत की गुफा, आश्रम, देवकुल आदि में निवास करने वाले और भिक्षार्थ ग्राम में प्रवेश करने वाले परिव्राजक, बहूदक तथा कुटीचर संज्ञक चार प्रकार के यति एवं कृष्ण परिब्राजक - नारायण में भक्तिशील विशिष्ट परिव्राजक, आदि, उन परिव्राजकों में ये आठ ब्राह्मण-परिव्राजक — ब्राह्मण जाति में से दीक्षित परिव्राजक होते हैं, जो इस प्रकार हैं : (१) कृष्ण, (२) करकण्ड, (३) अम्बड़, (४) पाराशर, (५) कृष्ण, (६) द्वैपायन, (७) देवगुप्त, (८) नारद, उन में ये आठ क्षत्रिय-परिव्राजक — क्षत्रिय जाति में से प्रव्रजित अर्थात् दीक्षित परिव्राजक होते हैं, जो इस प्रकार हैं : (१) शीलधी, (२) शशिधर, (३) नग्नक, (४) भग्तक, (५) विदेह, (६) राजराज, (७) राजराम, (८) बल, जो ग्राम में एक रात तथा नगर में पाँच रात प्रवास करते थे, उपलब्ध भोगों को स्वीकार करते थे, वे बहूदक कहे जाते थे, जो गृह में वास करते हुए क्रोध, मान, माया, लोभ, मोह तथा अहंकार का त्याग किये रहते थे, जाता था, वे परिव्राजक ऋक्, यजु, साम, अथर्वण इन चारों वेदों, पाँचव इतिहास – पुराण और छठे निघण्टु- नाम कोश के चारों वेदों का सांगोपांग रहस्य बोधपूर्वक परिज्ञान था, वे चारों वेदों के सारक — अध्यापन के द्वारा सम्प्रवर्तक, अथवा स्मारक - औरों को याद कराने वाले, पारंग चारों वेदों के पारगामी, धारक - चारों वेदों को स्मृति में बनाये रखने में सक्षम तथा वेदों के छहों अंगों के विशिष्ट ज्ञाता थे, वे षष्टितन्त्र में विशारद - निपुण थे, संख्यान - गणित विद्या, शिक्षा - ध्वनि विज्ञान - वेद मन्त्रों के उच्चारण के विशिष्ट ज्ञान, कल्प -- तथाविध आचार निरूपक शास्त्र या याज्ञिक कर्म काण्ड विधि, व्याकरण - शब्द शास्त्र, छन्द - पिंगल शास्त्र, विरूक्त - वैदिक शब्दों के व्युत्पत्ति मूलक व्याख्या ग्रन्थ, ज्योतिष शास्त्र, तथा अन्य ब्राह्मणों के लिये हितावह शास्त्र या वैदिक कर्मकाण्ड के मुख्य-. मुख्य विषय में विद्वानों के विचारों के संकल्पात्मक ग्रन्थ - इन सब में पूर्ण रूप से सुपरिनिष्ठित - अत्यधिक परिपक्व ज्ञानयुक्त थे अर्थात् विशिष्ट पारगामा थे ।
उन्हें कुटीचर कहा
अध्येता थे, उन्हें