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________________ उववाइय सुत्तं सू० ३८ 221 denizens of the first heaven, the Saudharma Kalpa, among the Kändarpika gods, the rest as before. The span of their stay there is a hundred thousand years added to a palyopama. 11 परिव्राजकों का उपपात Rebirth of Parivrăjaka Monks से जे इमे जाव...सन्निवेसेसु परिव्वायगा भवंति। तं जहासंखा जोई कविला भिउच्चा हंसा परमहंसा बहुउदया कुडिव्वया कण्हपरिवायगा । तत्थ खलु इमे अट्ठ माहण परिव्वायगा भवंति । तंजहा : कण्हे अ करकंडे य अंबडे य परासरे। कण्हे. दीवायणे चेव देवगुत्ते अ णारए ।। तत्थ खलु इमे अट्ठ खत्तियपरिव्वायया भवंति । तं जहा-- सीलई ससिहारे (य) णगई भग्गई तिअ।. विदेहे रायाराया रायारामे बलेति अ ।। ते णं परिव्वायगा रिउव्वेद-जजुब्वेद-सामवेय-अहव्वणवेय. . इतिहासपंचमाणं णिग्घंटुछट्ठाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउण्हं वेयाणं सारगा पारंगा धारगा वारगा सडंगवी सद्वितंतविसार या संखाणे सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे णिरुत्ते जोतिसामयणे अण्णेसु य बंभण्णएसु अ सत्येसु सुपरिणिट्ठिया यावि हुत्था । जो ये जीव ग्राम, आकर, नगर, खेट. कर्बट, द्रोणमुख, मडंब, पत्तन, आश्रम, निगम, संवाह तथा सन्निवेश में अनेक प्रकार के परिव्राजक होते हैं जो इस प्रकार हैं: साँख्य-पुरुष, प्रकृति, बुद्धि, अहंकार, पंच
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
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