________________
उववाइय सुत्तं सू० ३८
217
वानप्रस्थ तापसों का उपपात
Rebirth of forest-dwelling Tāpasa Monks
से जे इमे गंगाकूलगा वाणपत्था तावसा भवंति । तं जहाहोतिया पोत्तिया कोत्तिया जण्णई सड्डई थालई हुंपउट्ठा दत्तुक्खलिया उम्मज्जका सम्मज्जका निम्मज्जका संपक्खाला। दक्षिणकूलका उत्तरकूलका संखधमका कुलधमका मिगलुद्धका हत्थितावसा उदंडका दिसापोक्खिणो वाकवासिणो अंबुवासिणो बिलवासिणो जलवासिणो वेलवासिणो रुक्खमलिआ अंबुभक्खिणो वाउभक्खिणो सेवालभक्खिणो मूलाहारा कंदाहारा तयाहारा पत्ताहारा पुप्फाहारा बीयाहारा परिसडिय-कंद-मूल-तय-पत्त-पुप्फ-फलाहारा जलाभिसेअकढिणगायभूया आयावणाहिं पंचग्गितावेहिं इंगालसोल्लियं कंडुसोल्लियं कंठसोल्लियंपिव अप्पाणं करेमाणा बहूई वासाइं परियायं पाउणंति । बहूई वासाइं परियायं पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं जोइसिएसु देवेसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहिरं ठिई। .
जो ये जीव गंगा के किनारे रहनेवाले वानप्रस्थ-वनवासी तापस कई . . प्रकार के होते हैं, इस प्रकार हैं : श्रद्धा करने वाले, पात्र रखने वाले, कुण्डी धारण करने वाले, फलाहार करने वाले, जल में एक बार डुबकी लगाकर स्नान करने वाले, जल में बार-बार डुबकी लगाकर नहाने वाले, जल में कुछ देर तक डूब कर स्नान करने वाले, मिट्टी आदि के द्वारा शरीर के अवयवों को रगड़ कर स्नान करने वाले, दक्षिण कूलक-गंगा नदी के दक्षिणी तट पर ही रहने वाले, उत्तर कूलक-गंगा नदी के उत्तरी किनारे पर निवास करने वाले, शंखध्मायक-किनारे पर शंख बजा कर भोजन करने वाले, कूलमायक-किनारे पर खड़े होकर शब्द करके भोजन करने वाले, मगलुब्धक-व्याधों की तरह हिरणों का