SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 208 Uvavaiya Suttam Sh. 38 जिनके मुख छेद दिये जाते हैं और जिनके बायें स्कन्ध-कन्धे से लेकर दाहिनी काँख तक के शरीर-भाग मस्तक सहित चीर दिये जाते हैं, जिनके हृदय-कलेजे उखाड़ दिये जाते हैं, जिनके नेत्र निकाल लिये जाते हैं, जिनके दांत तोड़ दिये जाते हैं, जिनके अण्डकोश उखाड़ दिये जाते हैं, जिनकी गर्दन तोड़ दी जाती है, चावल के दाने के समान जिनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिये जाते हैं, जिनके शरीर का कोमल मांस उखाड़-उखाड़ कर उन्हींको खिलाया गया हो, जो रस्सी से बाँध कर खड्डे, कुएँ आदि में लटकाये जाते हैं, वृक्ष की शाखा में हाथ बाँधकर लटकाये जाते हैं, चन्दन के समान पत्थर आदि पर घिस दिये जाते हैं, दधिघट-पात्र स्थित दही के समान जो घोलित-मथ दिये जाते हैं, काठ के समान कुल्हाड़े से फाड़ दिये जाते हैं, जो इक्षु-गन्ने के समान कोल्हू में पेल दिये जाते हैं, जो शूली पर चढ़ाये जाते हैं, अर्थात् शूली में पिरो दिये जाते हैं, जो शूली से छिन्न-भिन्नबींध दिये जाते हैं अर्थात् जिनके शरीर से लेकर मस्तक में से शूली निकाल दी जाती है, जिन पर खार डाल दिया जाता है, या जिन्हें खार के बर्तन में डाल दिये जाते हैं, जिनको गीले चमड़े से बांध दिये जाते हैं, जिन्हें सिंह-पुच्छसे कर दिये जाते हैं, जो दावाग्नि में जल जाते हैं, जो कीचड़ में डूब जाते हैं, कीचड़ में फंस जाते हैं, जो संयम के मार्ग से भ्रष्ट होकर या भूख-प्यास आदि से पीड़ित होकर-परिषहों से घबरा कर मरते हैं, जो विषयवासना के सेवन में परतन्त्रता से पीड़ित या दुःखित होकर मरते हैं या हरिण के समान शब्द, गन्ध, रस आदि विषयों में लीन बन कर मरते हैं, जो सांसारिक इच्छा-पूर्ति के संकल्प के साथ अज्ञानपूर्वक तपश्चर्या करके मरते हैं, जो अन्तःशल्य-भावशल्य अर्थात् कलुषित भावों के काँटे को निकाले बिना ही भाले आदि से अपने आपको बेधकर मरते हैं, जो पर्वत से गिरकर अथवा अपने पर बड़ा पत्थर गिराकर मरते हैं, जो वृक्ष से गिरकर मरते है या वृक्ष के गिरने से मर जाते हैं, निर्जल प्रदेश में मर जाते हैं या मरुस्थल के किसी स्थान अर्थात् बड़े टीबे आदि से गिरकर मरते हैं, जो पर्वत से छलांग लगाकर मर जाते हैं, वृक्ष से झंपापातछलांग कर मरते हैं, मरुभूमि की रेती में गिरकर मर जाते हैं, जल म प्रवेश कर के मर जाते हैं, अग्नि में प्रवेश कर के मर जाते हैं, विषपान कर के मर जाते हैं, शस्त्रों के द्वारा अपने आप को चीर कर मरते हैं, जो वृक्ष की डाली आदि से लटक कर या अपने गले में फांसी लगा
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy