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उववाइय सुत्तं सू० ३८
च्छिन्नका कण्णच्छिण्णका णक्कच्छिण्णका उटुच्छिन्नका जिन्भच्छिन्नका सीसच्छिन्नका मुखच्छिन्नका मज्झच्छिन्नका वेकच्छच्छन्नका हियउप्पाडियगा णयणुप्पाडियंगा दसणुप्पाडियगा वसणुष्पाडियगा गेवच्छिण्णका तंडुलच्छिण्णका कागणिमंसक्वाइयया ओलंबिया लंबिअया घंसिअया घोलिअया फाडिअया पीलिया सूलाइ अया सूलभ - का खारवत्तिया वज्भवत्तिया सोहपुच्छियया दवग्गिदडिगा पंकोसण्णका पंके खुत्तका वलयमयका वसट्टमयका णियाणमयका अंतोसल्लमका गिरिपडिका तरुपडिका मरुपडियका गिरिपक्खंदोलिया तरुपक्खंदोलिया मरुपक्खंदोलिया जलपवेसिका Goryakant विसभक्खितका सत्य वाडितका वेहाणसिआ गिद्धपिका कंतारमतका दुभिक्खमतका असंकिलिट्ठपरिणामा ते कालमासे कालं किच्चा अण्णत रेसु वाणमंतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तहि ते स गतो तहि तेसि ठिती तहि तेसि उववाए पण्णत्ते ।
जो ये जीव ग्राम, आकर - नमक आदि के उत्पत्ति स्थान, नगर — जिनमें कर नहीं लगता हो, ऐसे शहर, खेट - धूल के परकोदों से युक्त, गाँव, कर्व अति सामान्य कस्बे, द्रोणमुख - स्थल मार्ग एवं जल मार्ग से युक्त स्थान, मडंब -- आस-पास गांव रहित बस्ती, पत्तन - ब न-बड़े नगर, जहाँ स्थल मार्ग या जल मार्ग से जाना संभव हो या बन्दरगाह, आश्रम - तापसों के आवास, निगम — व्यापारिक नगर, संवाह-- पर्वत की तलहटी में बसे हुए गाँव, सन्निवेश – सार्थवाह, सेना आदि के ठहरने के स्थान में मनुष्य होते हैं अर्थात् मनुष्य के रूप में जन्म ग्रहण करते हैं, जिनके किसी अपराध के कारण लोहे या काठ के बन्धन- विशेष से हाथ-पैर जकड़े हुए हैं, बाँध दिये जाते हैं, जिनको बेड़ियों से जकड़ दिये जाते हैं, जिनके पैर काठ के खोड़े में फँसे हुए होते हैं, डाल दिये जाते हैं, जो अन्धकारमय कारागार में बन्द कर दिये जाते हैं, जिनके हाथ विदीर्ण कर दिये जाते हैं, जिनके पैर काट दिये जाते हैं, जिनके कान काट दिये
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जाते हैं, जिनके नाक काट दिये जाते हैं, जिनके जिनकी जिह्वाएँ काट दी जाती हैं, जिनके
होठ छेद दिय जाते हैं, मस्तक छेद दिये जाते हैं,