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उववाइय सुत्तं सू० ३८ एकान्त बाल है-सर्वथा मिथ्यादृष्टि है, और एकान्त सुप्त है-मिथ्यात्व की निद्रा में बिल्कुल सोया हुआ है, बस-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय आदि स्पन्दनशील, हिलने-डुलने वाले प्राणी या जिनको त्रास का वेदन करते हुए अनुभव किया जा सके, वैसे जीवों का बहुलता से घात करता है, त्रस जीवों के प्राणों की हिंसा में लगा रहता है, क्या वह ( जीव ) मृत्यु-समय आने पर मरकर नैरयिकों में उत्पन्न होता है ?
महावीर : हाँ गौतम ! ऐसा होता है ॥४॥
Gautama : Bhante! Is a living being who has never practised restraint, till who is wholly asleep under the spell of falsehood and who is a killer of innumerable mobile beings, is he, having died at a certain moment of the eternal time, born among the infernal beings ?
Mahāvira : Yes, he does.. 4
गौतम : जीवे | भंते ! असंजए अविरए अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे इओ चुए पेच्चा देवे सिआ ?
महावीर : गोयमा ! अत्थेगइआ देवे सिया अत्यंगइआ णो देवे सिया ।
गौतम : हे भगवन् ! जिन्होंने संयम नहीं साधा है, जो अविरत हैं-हिंसा, असत्य आदि से विरत नहीं हुए हैं, जिन्होंने प्रत्याख्यान के द्वारा पापकर्मों का त्याग कर उन्हें नहीं मिटाया है, वे यहाँ से च्युत होकर-मरकर अगले जन्म में क्या देव होते हैं? क्या देव योनि में जन्म लेते हैं ?
___महावीर : गौतम ! कई देव होते हैं, कई देव नहीं होते हैं।
... Gautama : Bhante ! Is a living being who has never practised restraint, till has not desisted from sinful and other