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Uvavaiya Suttam Sa. 38
में ) चरम मोहनीय कर्म का वेदन-अनुभव करता हुआ जीव वेदनीय कर्म का ही बन्ध करता है, मोहनीय ( वस्तुतत्त्व के श्रद्धान और चारित्र में भ्रान्ति पैदा कराने में कारण रूप )-कर्म का बन्ध नहीं करता है ॥३॥
Gautama : Bhante! Does a living being experiencing karma causing delusion bind more karma causing delusion, also karma giving experience ?
Mahāvīra : Gautama ! Verily he does bind karma causing delusion, also karma giving experience. But when he is having karma causing delusion in an extreme form, he may acquire karma giving experience, but not one · causing delusion. 3
असंयत एकान्त सुप्तका उपपात . Rebirth of the Unrestrained
- गौतम : जीवे णं भंते ! असंजए अविरए अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे सकिरिए असंवुड़े एगंतदंडे एगंतबाले एगंतसुत्ते ओसण्णतसपाणघाती कालमासे कालं किच्चा णिरइएसु उववज्जति ?
महावीर : हंता उववज्जति ।।४।।
गौतम : हे भगवन् ! जो जीव असंयत है-जिसने संयम की आराधना नहीं की है, जो अविरत है-हिंसा, मषावाद आदि से विरत नहीं है, जिसने सम्यक् श्रद्धापूर्वक पापकर्मों को प्रतिहत नहीं किया है, त्याग नहीं किया है, हल्का नहीं किया है, जो सक्रिय है-(मिथ्यात्वपूर्वक) मानसिक वाचिक एवं कायिक क्रियाओं में संलग्न है, असंवृत हैसम्यक्त्व, व्रत, अप्रमाद आदि संवर से रहित है, अर्थात् आश्रव का निरोध नहीं किया है, जो एकान्तदण्ड से युक्त है-पापपूर्ण प्रवृत्तियों के द्वारा अपने आपको तथा दूसरों को सर्वथा दण्डित करता है, जो