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उववाइय सुत्तं सू० ३८
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इन्द्रियों के विषयों का निरोध नहीं किया है, जो एकान्त दण्डयुक्त है-जो अपने को एवं दूसरों को पापकर्मों के द्वारा सर्वथा दण्डित करता है, जो एकान्त बाल है-सर्वथा मिथ्या दृष्टि है, जो एकान्त सुप्त है-मिथ्यात्व की निद्रा में सोया पड़ा है, क्या वह (आत्मा) मोहनीय-पापकर्म से लिप्त होता है अर्थात मोहनीय कर्म का बन्ध करता है ?
महावीर : हाँ गौतम! वह मोहनीय कर्म का बन्ध करता है ॥२॥
Gautama : Bhante ! One who has never practised restraint, has caused harm to living organisms, has not reduced the intensity of sinful karma by. renunciation and stopped the inflow of sinful karma through complete renunciation, has not desisted from sinful and other activities, has not restrained his senses, chastises self and others by sinful deeds, has wrong outlook in all respects and is wholly asleep under the spell of falsehood, does he acquire karma causing delusion ?
Mahāvira : Yes, he does: 2.
- गौतम : जीवे णं भंते ! मोहणिज्जं कम्मं वेदेमाणे किं मोहणिज्ज कम्मं बंधइ ? वेअणिज्ज कम्मं बंधइ ?
महावीर : गोयमा ! मोहणिज्जंपि कम्मं बंधइ वेअणिज्जंपि कम्मं बंधति । णण्णत्थ चरिममोहणिज्ज कम्मं वेदेमाणे वेअणिज्ज कम्मं बंधइ णो मोहणिज्ज कम्मं बंधइ ॥३॥
गौतम : हे भगवन् ! क्या जीव मोहनीय कर्म का वेदन-अनुभव करता हुआ मोहनीय कर्म बाँधता है ? अर्थात उसका बन्ध करता है ? क्या वेदनीय कर्म का बन्ध करता है ?
_ महावीर : गौतम ! वह मोहनीय कर्म का बन्ध करता है, वेदनीय कर्म का भी बन्ध करता है। किन्तु (सूक्ष्म संपराय नामक दशवें गुणस्थान