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उवाइय सुत्तं सू० ३८
उस काल ( वर्तमान अवसर्पिणी ) उस समय ( चतुर्थ आरे के अन्त ) म श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी-शिष्य गौतम-गोत्रीय इन्द्र भूति नामक अनगार-श्रमण, जिनकी देह की ऊँचाई सात हाथ की थी, जिनकी आकृति समचौरस संस्थान-संस्थित थी, अर्थात् जिनके शरीर के चारों अंश सुसंगत-परस्पर समानुपाती, सन्तुलित थे, वे वन-ऋषभनाराच-संहनन-सुदृढ़ अस्थि-बन्धनों से-विशिष्ट दैहिक रचना से युक्त थे, कसौटी पर अंकित स्वर्ण-रेखा के सदश आभा लिये हुए, कमल के सदश गौर वर्ण के थे, वे उग्र-कठोर तपस्वी, कर्म-वन को भस्मसात् करने में अग्नि के समान दीप्त-प्रज्ज्वलित तप करने वाले थे, तप्ततप-जिनके शरीर पर तपश्चरण की अति तीव्र झलक व्याप्त थीं अर्थात् जो कठोर तथा विपुल' तपश्चर्या में संलग्न थे, जो उराल-प्रबल अध्यात्म-साधना में सुदृढ़ थे, घोर गुणअतीव उत्तम गुण जिनको धारण करने में अद्भुत क्षमता चाहिये, ऐसे विशिष्ट गुणों के धारक थे, जो घोर तपस्वी-कठोर या प्रबल तपस्वी थे, जो घोर ब्रह्मचर्यवासी-कठोर ‘ब्रह्मचर्य के पालक थे, जो उत्क्षिप्त शरीर--शरीर के सार-सम्भाल अथवा दैहिक सजावट से रहित थे, जो अपने शरीर के भीतर विशाल तेजोलेश्या समेटे हुए थे, (इस प्रकार के गौतम स्वामी) श्रमण भगवान् महावीर से न अधिक दूर और न अधिक निकट अर्थात् समुचित स्थान पर अवस्थित हो, ऊर्द्धजार्नु-घुटने ऊँचे किये हुए, अधोशिर-मस्तक नीचे किये हुए, ध्यान रूपी कोष्ठ में प्रविष्ट हुए अर्थात् ध्यान की मुद्रा में, संयम तथा तप से अपनी आत्मा को भावित-अनुप्राणित करते हुए विचरणशील—अवस्थित थे।
. In that period, at that time, Sramana Bhagavān Mahavira had - as his senior-most disciple, a homeless monk, named Indrabhūti who belonged to the Gautama line. He was seven cubits in height. His body-structure was a graceful square, wellbalanced in all respects. The joints of his bones were very strong. The glow of his body was akin to a golden line drawn on a black stone and complexion as white as that of a lotus. He was a hard penancer, a burning penancer, a purified penancer, a great penancer, a tremendous penancer, conqueror of hardships-sensespassions, holder of highest.virtues, a great sage, Brabmacārī of the