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Uvavāiya Suttarit Su. 38 ' एवं परितुष्ट हुई। हर्षातिरेक से विकसित हृदय हुई। अपने स्थान से उठ खड़ी हुई। वैसा कर-उठ कर श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार आदक्षिणा-प्रदक्षिणा की। वैसा कर-आदक्षिणा-प्रदक्षिणा कर भगवान् को वन्दना की, नमस्कार किया। वन्दन-नमन कर वे इस प्रकार बोली"हे भगवन् ! आप द्वारा निर्ग्रन्थ-प्रवचन-धर्मोपदेश, सुआख्यात-सुन्दर . रूप में प्रतिपादित किया गया है...यावत् इससे श्रेष्ठ धर्मोपदेश की तो बात ही कहाँ है ?" इस प्रकार कहकर, वे जिस दिशा से आई थीं उसी दिशा की ओर लौट-चली गई ॥३७॥
Then Queen Subhadrā and other ladies of the harem, having heard the Law from Sramaņa Bhagavān Mahāvirà, were highly pleased, till their hearts expanded with glee. They rose from their seats. Having done so, they moved thrice round Bhagavān Mabāvira and paid their homage and spoke the following words : “Bhante ! You have expressed the tenets of the Nirgranthas in a nice way, till what to speak
of excelling you." So saying they departed in the direction · from which they came. 37
औपपातिक पृच्छा
On Rebirth in fresh Species
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जे? अंतेवासी इंदभूई नामं अणगारे गोयमसगोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वइरोसहनारायसंघयणे कणगपुलकनिग्घसपम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे घोरतवे उराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढ़सरीरे संखित्तविउलतेअलेस्से समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्डे जाणू अहोसिरे झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं. भावमाणे विहरति ।