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उववाइय सुत्तं सू० ३७ वैसा कर-आदक्षिणा-प्रदक्षिणा कर वन्दना की, नमस्कार किया। वन्दनानमस्कार कर, उन्होंने इस प्रकार कहा-"हे भगवन् ! आप द्वारा सुआख्यात-सुन्दर रूप में प्रतिपादित किया गया निर्ग्रन्थ प्रवचनअरिहन्त-देशना...यावत् इससे श्रेष्ठ धर्म के उपदेश की तो बात ही कहाँ है ?” इस प्रकार कहकर, वह जिस दिशा से आया था, उसी दिशा की ओर लौट गया ॥ ३६ ॥
___Thereafter, king Kapika, son of Bhambhasāra, having heard the Law from Sramaņa Bhagavān Mahāvira, was highly
pleased, till his heart expanded with glee. He rose from his ' seat. Having done so, he moved thrice round Bhagavān
Mahāvira and paid his homage and obeisance, and spoke the following words : "Bhante ! . You have expressed the tenets of the Nirgranthas in a nice way, till what to speak.. of excelling you." So saying he departed in the direction from which he came. : 36
रानियों का गमन
The Queens depart
तए णं ताओ सुभद्दापमुहाओ देवीओ समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म हट्टतुटु जाव..हिअयाओ उहाए उद्वित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति । करेत्ता वंदंति णमंसंति । वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-सुअक्खाए ते भंते ! णिग्गंथे पावयणे जाव...किमंग पुण इत्तो उत्तरतरं ? एवं वंदित्ता जामेव दिसि पाउन्भूआओ तामेव दिसि पडिगयाओ। समोसरणं सम्मत्तं ॥३७॥ ।
उसके पश्चात् सुभद्रा आदि प्रमुख देवियों-रानियों ने श्रमण भगवान महावीर के निकट धर्म का श्रवण कर, हृदय में धारण कर हर्षित