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उववाइयं सुत्तं सू० ३४
जहा रागेण कडाणं कम्माणं पावगो फलविवागो । - जह य परिहीणकम्मा सिद्धा सिद्धालयमुर्विति ।। ६
___ उसके बाद जिस प्रकार नैरयिक नरक में जाते हैं, और वे वहां नैरयिकों जैसी वेदना पाते हैं भगवान् ने बतलाया। तिर्यञ्च योनि में जन्म लेने वाले जीव शारीरिक एवं मानसिक दुःख प्राप्त करते हैं। मनुष्य भवजीवन अनित्य है। उसमें व्याधि, वृद्धावस्था-बुढ़ापा, मृत्यु तथा वेदना आदि प्रचुर-अत्यधिक कष्ट हैं। देवलोक में देव देवी-ऋद्धि और देवी-सुख प्राप्त करते हैं। भगवान् महावीर ने नरक, तिर्यञ्च-योनि, मनुष्य के भाव, देवलोक, सिद्ध, सिद्धावस्था और जीव निकाय का सम्पूर्ण रूप से कथन किया। जीव जैसे कर्म का बन्ध करते हैं, मुक्त होते हैं, और जिस प्रकार परिक्लेश पाते हैं एवं कई अप्रतिबद्ध-अनासक्त व्यक्ति जिस प्रकार दुःखों का अन्त करते हैं, पीड़ा, वेदना और आकुलतापूर्ण चित्तयुक्त जीव जिस प्रकार. दुःख-सागर को प्राप्त करते हैं, और वैराग्य प्राप्त जीव जिस प्रकार कर्मदल को चूर--ध्वस्त कर देते हैं कहा। रागपूर्वक किये गये कर्मों का फल-विपाक जिस प्रकार पाप रूप या पापपूर्ण होता है और कर्मों से सर्वथा रहित होकर सिद्ध-जीव जिस प्रकार सिद्धालय-सिद्धावस्था प्राप्त करते हैं वह भी कहा ।
He continued : Some souls go to hells, and as infernals, They suffer there an immense pain. Some go to the world of animals And suffer physical and mental pain. 1 Some go to the world of human beings And experience disease, old age and death. Some are destined to reach heavenly abodes To command the enormous treasure and happiness great. 2 So infernals and those in animal world, Those in the world of men and the divine beings, The perfected souls and those lodged at the crest, Six forms of life are constituted by them. 3