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Uvavaiya Suttam Si. 34
बन्ध करते हैं, फलतः वे देव रूप में उत्पन्न होते हैं : .१) सराग संयमराग अथवा आसक्ति युक्त चारित्र का पालन करने से, (२) संयमासंयम-देश विरति-श्रावक धर्म का पालन करने से, (३) अकाम निर्जराविवशतावश या निरूद्देश्य कष्ट सहने से, (४) बालतप–अज्ञान युक्त अवस्था या मिथ्यात्त्व दशा में तपश्चर्या करने से।
And on account of the following reasons, a soul may be born in the world of animals, viz. practising hypnotism on others, deceiving others by changing one's dress / appearance, speaking false words, diverting one's attention when he is about to be robbed by feigning to be inactive / innocent for a short while, and by cunning. And on account of the following reasons, a soul may be born in the world of men, viz. natural simplicity, natural humility, kindness / compassion and absence of jealousy. And among the divine beings for practising restraint with some attachment, practising part restraint, undergoing pain / strain on account of helplessness and by practising the penance of an imprudent person. Such is the Law.
तमाइक्खइ-- जह णरगा गम्मति जे णरगा जा य वेयणा णरए। . सारीरमाणसाइं दुक्खाइं तिरिक्खजोणीए ॥ १ माणुस्सं च अणिच्चं वाहिजरामरणवेयणापउरं । देवे अ देवलोए देविड्डि देवसोक्खाई ॥ २ णरगं तिरिक्खजोणि माणुसभावं च देवलोअं च । सिद्धे अ सिद्धवसहि छज्जीवणियं परिकहेइ ॥ ३ जह जीवा बभंति मुच्चंति नह य परिकिलिस्संति । जह दुक्खाणं अंतं करंति केई अपडिवद्धा ॥ ४ अट्टदुहट्टियचित्ता जह जोवा दुक्खसागरमुर्विति । जह वेरग्गमुवगया कम्मसमुग्गं विहाडंति ॥ ५ .