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Uvavaiya Suttam Su. 34
लोक का अस्तित्व है, अलोक का अस्तित्व है। इसी प्रकार जीव, अजीव, बन्ध, मोक्ष, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, वेदना, अर्हत्अरिहन्त, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, नरक, नैरयिक, तिर्यञ्चयोनिक, तिर्यञ्चयोनिका, माता, पिता, ऋषि, देव, देवलोक, सिद्धि, सिद्ध, परिनिर्वाण - कर्मावरणों के क्षीण होने से आत्मिक स्वस्थता अर्थात् परमानन्द, परिनिर्वृत्त - परिनिर्वाण -युक्त व्यक्ति, इन सभी का अस्तित्व है ।
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There is the loka ( universe), there is aloka ( space ). Likewise, there are souls and non-souls ( matter), bondage and liberation, virtue and vice, influx, check and experience, total exhaustion of karma, Arhats, Cakravarties, Baladevas, Vāsudevas, hells and the infernals, animals, male as well as female, parents-mother and father, rsis, divine beings, heavens, perfection, perfected beings, liberation and the liberated.
अस्थि पाणाइवाए मुसावाए अदिण्णादाणे मेहुणे परिग्गहे । अत्थि कोहे माणे माया लोभे जाव... मिच्छादंसणसल्ले ।
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प्राणातिपात — प्राणघात, हिंसा, मृषावाद-असत्य, अदत्तादान - चोरी, मैथुन और परिग्रह है, क्रोध, मान, माया, लोभ यावत् ( प्रेम - अव्यक्त माया
लोभ जनित प्रिय या प्रीति रूप भाव, द्वेष -- अप्रकट मान व क्रोध जनित अप्रिय अथवा अप्रीति रूप भाव, कलह - लड़ाई-झगड़ा, अभ्याख्यान - असत्य दोषारोपण, पैशुन्य - चुगली या किसी के होते - अनहोते दोषों - दुर्गुणों का प्रगटीकरण, परपरिवाद - निन्दा, रति- मोहनीय कर्म के उदय परिणाम स्वरूप असंयम में रूचि दिखाना, अरति- मोहनीय कर्म के उदय के परिणाम स्वरूप संयम में अरुचि मानना, मायामृषा - विश्वासघात या छलपूर्वक झूठ बोलना ) मिथ्यादर्शन शल्य है ।
There are slaughter of life, false speech, acquisition without bestowal, sex behaviour and accumulation of property. There are anger, pride, attachment, greed, till the thorn derived from wrong faith,