________________
178
Uvavaiya Suttam Sh. 34
सयवंदाए अणेगसयवंदपरिवाराए ओहबले अइबले महब्बले अपरिमिअबलवीरियतेयमाहप्पकंतिजुत्ते सारयनवत्थणियमहुरगंभीरकोंचणिग्घोसदुंदुभिस्सरे उरेवित्थडाए कंठेऽवट्ठियाए सिरे समाइण्णाए अगरलाए अमम्मणाए सव्वक्खरसण्णिवाइयाए पुण्णरत्ताए सव्वभासाणुगामिणीए सरस्सइए जोयणणोहारिणा सरेणं अद्धमागहाए भासाए भासति अरिहा धम्म परिकहेइ ।
.. उसके बाद श्रमण भगवान् महावीर ने भंभसार के पुत्र राजा कूणिक, सुभद्रा आदि प्रमुख देवियों-रानियों एवं अति विशाल परिषद् को धर्म देशना दी। भगवान् महावीर के धर्मोपदेश सुनने को उपस्थित ऋषि-अतिशय ज्ञानी साधु परिषद्, मुनि-वाक्-संयमी या मौनी साधु परिषद्, यतिचारित्र के प्रति प्रयत्नशील श्रमण परिषद, देव परिषद्, कई सैकड़ों श्रोताओं के समूह, कई सैंकड़ों परिवारों के समूह उपस्थित थे। ओघबलीसदा एक समान रहने वाले बल के धारी, अतिबली-अत्यधिक बल युक्त, महाबली-प्रशस्त बल सम्पन्न, अपरिमित-असीम बल-शारीरिक-शक्ति, वीर्य-आत्मजनित बल, तेज--महत्ता या माहात्म्य और कान्ति से युक्त, शरद्ऋतुकालीन नूतन मेघ मधुर, गम्भीर गर्जन, क्रौंच पक्षी के निर्घोष, एवं नगाड़े की ध्वनि के समान मधुर गम्भीर स्वर युक्त श्रमण भगवान् महावीर ने हृदय में विस्तृत होती हुई कण्ठ में अवस्थित--ठहरती हुई, तथा मस्तक में परिव्याप्त होती हुई, अलग-अलग स्व-स्व स्थानीय उच्चारण युक्त अक्षरों सहित, अस्पष्ट उच्चारण से रहित अथवा हकलाहट से रहित सुव्यक्त अक्षर सन्निपात-वर्ण संयोग -वर्गों की सुव्यवस्थित शखला लिये हुएं, परिपूर्ण, स्वर कला से संगीतमय अर्थात् स्वर माधरी युक्त, और श्रोताओं की सभी भाषाओं में परिणत होने वाली सरस्वती के द्वारा एक योजन तक पहुंचने वाले स्वर में, अर्द्धमागधी भाषा में धर्म का पूर्ण रूप से कथन किया।
There on Bhagavān Mahāvīra, always the same in physical strength, with a body endowed with power, energy, glow and greatness, illustrious, with a voice like that of a krauñca bird or like the sound of the Autumn cloud or the heavenly trumpet delivered his sermon at full length to the great congregation attended