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Uvavāiya Suttam Su. 33
passed through the city of Campa, till they came to the place where stood the Purṇabhadra temple.
उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते छत्तादिए तित्थयरातिसे से पासंति । पासित्ता पाडिए कपाडि एक्काई जाणाई ठवंति । ठवित्ता जाणेहिंतो पच्चोरुहंति ।
वहाँ आकर श्रमण भगवान् महावीर के न अधिक दूर, न अधिक निकट अर्थात् समुचित स्थान पर ठहर गई । तीर्थ करत्व सूचक छत्र, आभामण्डल आदि अतिशयों को देखा | देख कर अपने-अपने यानों- रथों को रुकवाया — ठहराया । रुकवा कर वे रथों से नीचे उतरीं ।
Wherefrom, the supernatural's surrounding Bhagavan Mahavira were visible, they stopped their vehicles and alighted therefrom.
जाणेहिंतो पच्चरहिता बहूहिं खुज्जाहिं जाव... परिक्खित्ताओ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छति । तेणेव उवागच्छत्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छंति तं जहा - सच्चित्ताणं दव्वाणं विउसरणयाए अच्चित्ताणं दव्वाणं अविउसरणयाए विणओणताए गायलट्ठीए चक्खुप्फासे अंजलिपग्गहेणं मणसो एगत्तकरणेणं । समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति वदति णमंसंति । वंदित्ता णमंसित्ता कूणियरायं पुरओ कट्टु ठिइयाओ चेव सपरिवाराओ अभिमुहाओ विणणं पंजलिउडाओ पज्जुवासंति ||३३||
वे रथों से नीचे उतर कर अपनी बहुत सी कुब्जा, वौनी आदि दासियों के समूह से घिरी हुई बाहर निकलीं । जहाँ श्रमण भगवान महावीर थे, वे