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उववाइयं सुत्तं सू० ३२
ठवित्ता अभिसेक्काओ हत्थरयणाओ पच्चोरुहइ । अभिसेक्काअ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहित्ता अवहट्टु पंच रायककुहाई तं जहा -- खग्गं छत्तं उप्फेसं वाहणाओ वालवीअणं ।
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( चम्पा नगरी से ) निकल कर, जहाँ पूर्णभद्र चैत्य था, वहाँ आया । आकर श्रमण भगवान् महावीर के न अधिक दूर, न अधिक निकट अर्थात् समुचित स्थान पर रुका। तीर्थंकर के छत्र, आभामण्डल आदि अतिशयों को देखा । देखकर अपनी सवारी के अभिषेक्य - प्रमुख हस्तिरत्न को ठहराया। ठहरा कर अभिषेक्य - हस्तिरत्न से नीचे उतरा । अभिषेक्य – प्रमुख उत्तम हाथी से उतर कर पाँच राज चिन्हों को अलग किये। जो इस प्रकार हैं : (१) खड्ग -- तलवार, (२) छत्र, (३) मुकुट, (४) उपानह -- जूते, (५) चंवर ।
Having come out of the city of Campa, he came to the vicinity of the place where stood the temple named Purṇabhadra. Having arrived there, he saw, not from very far nor from too near, the supernaturals like the umbrella, etc., which go with a Tirthankara. There he stopped the royal elephant and alighted from it. Having come down to the ground, he removed from his person and attendance the five royal decorations which were sword, umbrella, crown, sandals and cāmara.
जेणेव संमणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ । उवागच्छत्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छति तं जहा -- सच्चित्ताणं दव्वाणं विउसरणयाए अच्चित्ताणं दव्वाणं अविउसरण याए एगसाडियं उत्तरासंगकरणेणं चक्खफासे अंजलि - पग्गहेणं मणसो एगत्त-भावकरणेणं । समणं भगवं महावीरं त्तिक्खुतो आयाहिणं पयाहिणं करेइ । त्तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेत्ता वंदति णमंसति । वंदित्ता णमंसित्ता तिविहाए