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Uvavaiya Suttam Su. 32
धोसेणं पडिवुज्झमाणे पडिपुज्झमाणे भवणपंतिसहस्साइं समइच्छमाणे समइच्छमाणे चंपाए णयरीए मज्झमझेणं णिग्गच्छइ ।
उसके बाद भंभसार के पुत्र राजा कुणिक का हजारों नर-नारी अपनी नेत्र-मालाओं से बार-बार दर्शन कर रहे थे। हजारों नर-नारी अपनी हृदय-मालाओं से उसका बार-बार अभिनन्दन कर रहे थे। हजारों नर-नारी अपनी शुभ मनोरथ-मालाओं से हम उसकी सन्निधि में रह पाएँ, इस प्रकार । उत्सुकतापूर्ण मनोकामनाएँ लिये हुये थे। हजारों नर-नारी वचन मालाओं से उसका बार-बार अभिस्तवन-गुणों का संकीर्तन कर रहे थे। हजारों नर-नारी उसकी कान्ति-दैहिक-दीप्ति, उत्तम-सौभाग्य आदि सद्गुणों के कारण ये स्वामी हमें सदा-सर्वदा प्राप्त रहें-- ऐसी बार-बार उत्कण्ठाअभिलाषा करते थे। बहुत से हजारों नर-नारियों द्वारा अपने हाथों से उपस्थापित अंजलिमाला-प्रणामांजलियों को अपना दाहिना हाथ ऊँचा उठा कर बार-बार स्वीकार करता हुआ अत्यधिक कोमल; मधुर घोष-वाणी से उनकी कुशल वार्ता पूछता हुआ, भवनों की हजारों पंक्तियों को लांघता हुआ राजा कूणिक चम्पा नगरी के बीचों-बीच होता हुआ निकला।
Thus king Kūņika, son of Bhambhasāta, being observed by thousands of eyes, being greeted by thousands of hearts, being coveted by thousands of desires, being sought by glow and fortune, being praised by thousands of words, and having accepted the obeisance from thousands of folded palms, from thousands and thousands of men and women and enquiring their welfare with sweet words, left behind innun cable rows of houses and crossed through the heart of the city of Campā.
णिगच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छइ । . उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते छत्ताईए तित्थयराइसेसे पासइ । पासित्ता आभिसेक्क हत्थिरयणं ठवेइ ।