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उववाइय सुत्तं सू० ३१
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collyrium. After the king had taken his seat on the back of the elephant, the following eight auspicious things preceded the king's vehicle. They were : svastika, Srivatsa, nandyāvarta, vardhamānaka, bhadrāsana ( seat ), jar, fish and mirror.
तयाऽणंतरं च णं पुण्ण-कलस-भिंगार दिव्वा य छत्तपडागा सचामरा दंसणरइअआलोअदरसणिज्जा वाउद्भूय-विजय-वेजयंती ऊस्सिआ गगणतलमणुलिहंती पुरओं अहाणुपुव्वीए संपढिआ । तयाऽणंतरं च णं वेरुलियभिसंतविमलदंडं पलंबकोरंटमल्लदामोवसोभियं चंदमंडलणिभं समूसिअविमलं आयवत्तपवरं सीहासणं वरमणिरयणपादपीढं सपाउआजोयसमाउत्तं बहु किंकरकम्मकरपुरिसपायत्तपरिक्खित्तं पुरओ अहाणुपुब्बीए संपट्ठियं ।
:: तत्पश्चात् जल से परिपूर्ण कलशं, झारिया, दिव्य छत्र, पताका, जो कि चामर--चंवर से युक्त, दर्शनरचित-राजा के दृष्टिपथ में अवस्थित-राजा को दिखाई देने वाली, आलोकदर्शनीय–देखने में सुन्दर प्रतीत होने वाली, वायु से फहराती, ऊँची उठाई हुई थी, वह मानों आकाश तल को स्पर्श करती हुई सी विजय-बैजयन्ती-विजय पताका थी, उसे लिये राजपुरुष चले या वह पताका गगनतल' को छूती हुई-सी आगे रवाना हुई। उसके बाद वैदूर्यः ( वैडूर्य )-नीलम की प्रभा से देदीप्यमान विमल-दण्ड से युक्त, कोरंट पुष्पों की लम्बी लटकती हुई मालाओं से सुशोभित, चन्द्रमण्डल के समान आभामय, ऊँचा तना हुआ निर्मल आतपत्र–धूप से बचाने वाला छत्र, अति उत्तम सिंहासन, श्रेष्ठ मणिरत्नों से विभूषित अर्थात् जिसमें मणियाँ और रत्न जड़े हुए थे जिस पर राजा की पादुकाओं की जोड़ी रखी हुई थीं। वह पादपीठ--राजा के पैर रखने की चौकी-पीढा और जो अनेक किङ्करों-प्रत्येक कार्य पच्छापूर्वक करने वाले-सेवक या किसी विशेष-कार्य विभाग में नियुक्त वैतनिक सेवक, पदातियों-पंदल चलने वाले व्यक्तियों से घिरे हुए थे, क्रमशः आगे-आगे रवाना किये गये।