________________
156
Uvavaiya Suttam Su. 31
को साथ लेकर देशान्तर में व्यापार करने वाले, दूत-संदेशवाहक, सन्धिपाल--राज्य के सीमान्त प्रदेशों के अधिकारी-इन सभी से संपरिवृत्त-घिरा हुआ वह राजा कूणिक धवल महामेघ-सफेद विशाल बादल से निकले नक्षत्रों-आकाश को देदीप्यमान करते हुये तारों के समूह में मध्यवर्ती चन्द्रमा के समान देखने में बड़ा मनोरम लगता था। वह जहाँ बहिर्वती सभा भवन था, आभिषेक्य-प्रधान हस्तिरत्न था, वहाँ आया।
After the monarch had come out of the bathroom, he was joined by many rulers of gana, of danda, kings, ishara, talavara, māndavika, kauțumbika, ivya, śreșthi, army commanders, export merchants, ambassadors, envoys, and thus surrounded, he looked like the moon in the company of planets, satellites and stars. Thus ( with a long train), he arrived at the general court of audience, and from there to the royal elephant.
उवागच्छित्ता अंजणगिरिकडसण्णिभं गहवइं णरवई दूरूढे । तए णं तस्स कूणियस्स रण्णो भंभसारपुत्तस्स आभिसिक्कं हत्थिरयणं दुरूढस्स समाणस्स तप्पढमयाए इमे अटुट्ठमंगलया पुरओ अहाणुपुवीए संपट्ठिआ तं जहा-सोवत्थिय-सिरिवच्छ-णंदिआवत्त-वद्धमाणक-भद्दासण-कलस-मच्छ-दप्पण।
वहाँ आकर अंजनगिरि-काजल के पर्वत के समान विशाल उच्च गजपति पर वह कूणिक नरपति आरूढ़ हुआ। तदनन्तर उस भंभसार पुत्र राजा कूणिक के आभिषेक्य-प्रधान हस्तिरत्न पर सवार हो जाने पर सब से पहले ये आठ मंगल क्रमशः रवाना किये गये। जो इस प्रकार हैं(१) स्वस्तिक (२) श्रीवत्स (३) नन्द्यावर्त (४) वर्द्धमानक (५) भद्रासन (६) कलश (७) मत्स्य (८) दर्पण।।
Having arrived there, the king took his seat on the back of the elephant which looked like a mountain made of